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स्वर हैं। मोहादि कषायों के कारण कर्मरूप पुद्गल कार्मणों का बन्ध आत्मप्रदेशों के साथ होता है। अतः पद्गल वर्गणाओं के आगमन को संयम से रोका जा सकता है, यही संवर तत्व है। तप, ध्यान द्वारा संचित कर्म की निर्जरा (अहिर्गमन) होती है। चार घातिया कर्म नष्ट होने पर केवलज्ञान की प्राप्ति होती है। अरिहन्त, वीतरागी, सर्वज्ञ होने के कारण निसर्गतः दिव्यध्वनि के द्वारा हितोपदेश होता है। उपदेशों के विचारों में प्रधानतः लोककल्याण हेतु आचार पक्ष प्रधान रहा है, तो मुमुक्षुओं के लिए सिद्धान्त पक्ष प्रमुख रूप में रहा है, जिक्तके बोध होने पर आत्मा साधना-पथ पर दृढ़ता से सम्बकचारित्र का पालन करके परमात्मा बन सके । आधुनिक आलोच्य महाकाव्यों में सप्ततत्त्वों का सविस्तार विवेचन सफलतापूर्वक हो पाया है। विवेचन प्रश्नोत्तर शैली में किया गया हैं।
अष्टकर्म सिद्धान्त
अष्टकर्म सिद्धान्त की अभिव्यक्ति से यह निष्कर्ष स्पष्ट होता है कि पुद्गल कर्म-वर्गणाओं के द्वारा विभावों (राग, द्वेष, मोह) का बन्ध लगातार निरन्तर होने से आत्मा को अनादिकाल से भव-भवान्तर में भटकना पड़ता है। अतः पुनर्जन्म का बोध आवश्यक होता है। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय कर्म आत्मा की ज्ञान एवं दर्शनशक्ति पर आवरण डालते हैं, अतः आत्मा अज्ञानी, मिथ्यात्वी बनी रहती हैं। मोहनीय कर्म के उदय के कारण जड़ के प्रति आसक्ति, ममत्व, तृष्णा, मूची बनी रहती है। परिणामस्वरूप आत्मा की व्रत, संयम, तप, त्याग आदि के चारित्रपालन की बुद्धि नहीं होती तथा अन्तराय कर्म के कारण अनेक उपसर्ग, उपद्रव सहन करने पड़ते हैं। अतः ये चार कर्म आत्मा का धात करनेवाले हैं। इन चार घातिया कर्मों का संयप, तप, ध्यान के द्वारा नाश करनेवाला हो अरिहन्त वीतरागी होता है । नाम, आयु, गोत्र, वेदनीय ये चार अघातिया कर्म महानिर्वाण के समय आप-ही-आप नष्ट होते हैं। अरिहन्त के महानिर्वाण होने पर उनकी आत्मा सिद्धावस्था में पहुंचती है।
रत्नत्रय सिद्धान्त
'रत्नत्रयसिद्धान्त' में सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र के पालन से ही मोक्ष मिल सकता है, इस तथ्य का विवेचन है। आलोच्य महाकाव्यों में रत्नत्रय सिद्धान्त की अभिव्यक्ति अत्यन्त प्रभावी ढंग से हो पायी है, लेकिन अष्टकर्मों का विवेचन सफलता के साथ मात्र डॉ. छैलबिहारी गुप्त कर पाये हैं। अन्य कवियों ने भगवान महावीर के विचारों की अभिव्यक्ति के लिए प्रसंगोचित अष्टकर्मों के सन्दर्भ मात्र दिये हैं।
आचार-पक्ष
आचार-पक्ष विषयक भगवान महावीर के विचार-दर्शन को चित्रित करते हुए 130 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर