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उक्त कथन से भगवान महावीर की अनेकान्तवादी जीवनदृष्टि की प्रासौगेकता पर प्रकाश पड़ता है।
महात्मा गाँधी जी के अपने विचार हैं, “इसी सिद्धान्त ने मुझे यह बतलाया है कि मुसलमान की जाँच मुस्लिम दृष्टिकोण से तथा ईसाई की परीक्षा ईसाई दृष्टिकोण से की जानी चाहिए। पहले मैं मानता था कि मेरे विरोधी अज्ञान में हैं। आज मैं विरोधियों की दृष्टि से भी देख सकता हूं। मेरा अनेकान्तवाद सत्य और अहिंसा-इन बुगल सिद्धान्तों का ही परिणाम है।"
अतः यह आवश्यक है कि आधुनिक जीवन के सन्दर्भ में अनेकान्तबाद को अपनाकर ही हम अपनी समस्त समस्याओं का समाधान प्राप्त कर सकते हैं।
आचार्य विनोबा भावे का कथन है-"मैं कबूल करता हूँ कि गीता का गहरा असर मेरे चित्त पर नहीं है, उसका कारण यह है कि महावीर ने जो आज्ञा दी है वह याबा को पूर्ण मान्य हैं। आज्ञा यह कि 'सत्यग्राही' बनो। आज जहाँ-जहाँ जो उठा सो 'सत्याग्रहीं' होता है। बाबा को भी व्यक्तिगत सत्याग्रही के नाते गाँधी जी ने पेश किया था, लेकिन वावा जानता था वह कौन हैं, वह सत्याग्रही नहीं, सत्वग्राही है। हर मानव के पास सत्य का अंश होता है, इसीलिए मानव जन्म तार्थक होता है। तो सब धर्मों में, सब पन्थों में, सब मानवों में सत्य का जो अंश है, उसको ग्रहण करना चाहिए । हमको सत्यग्राही बनना चाहिए, यह जो शिक्षा है भगवान महावीर की, बाबा पर गीता के बाद उसो का असर है। गीता के बाद कहा, लेकिन जब देखता हूँ तो मुझे दोनों में फरक ही नहीं दीखता है।
विनोबा जी के इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि भगवान महावीर के विचार-दर्शन से वे कितने प्रभावित थे।
काकासाहेब कालेलकर भगवान महावीर के तत्त्व-चिन्तन की प्रासंगिकता का विश्लेषण करते हुए लिखते हैं, "आज जब संसार अनेक दृष्टियों से व्याकुल हो उठा है, तब : स व्यापक जीवन की पुख्य उलझन का हल ढूँढना जरूरी हो गया है। इसके लिए महावीरों की आवश्यकता है, प्रयोग-वीरों की आवश्यकता है। ऐसे लोग अपनी श्रद्धा वा दृढ़ बनाने के लिए महावीर के जीवन को समझेंगे और स्वयं ही ऊँचे उठने का प्रयत्न करेंगे। महावीर के स्मरण और चिन्तन से हम ऐसी प्रेरणा प्राप्त करें और अपने व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन का उद्धार करें।"
भगवान महावीर के चरित्र की तपसाधना, ज्ञानसाधना, ध्यान और आत्मसंयम की विना के अध्ययन से मनुष्य का व्यक्तित्व उभरता है और उनके व्रतों के पालन
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1. i. डॉ. नरेन्द्र मानावत : भगवान महाबोर आधुनिक सन्दर्भ में, पृ. 35 2. अनोबा भावे : जैनधर्म मेरी दृष्टि में, पृ. 40 ३. काकासाहेव कालेलकर : महावीर का जीवन सन्देश युग के सन्दर्भ में. पू. 6
146 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित 'भगवान महावीर