Book Title: Hindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Author(s): Sushma Gunvant Rote
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 144
________________ वीतरागता वर्तमान युग में जो मानसिक तनाय बढ़ रहा है उसके मूल में वैषम्य की भावना है। मनुष्य की तृष्णा, मच्छो, आसक्ति, बासना, अहंकार ही तनावों की पूल जड़ है। जितनी आसक्ति उतना दुःख, जितनी अनासक्ति उतना सुख, सुख-दुःख मनोभाव वस्तुगत नहीं, आत्मगत है। अतः पानसिक विकारों पर जय प्राप्त करना वीतरागता है। चीतरागता ही महावीर की दृष्टि में जीवन का सबसे बड़ा आदर्श है। आदर्श की प्राप्ति मनुष्य को समता-भाव की साधना से हो पाती है। मानवतावाद जन्म के आधार पर मानवता के जातिगत विभाजन को एवं अहंकार को निन्द्य माना है। जाति या कुल का अहंकार मानवता का सबसे यड़ा शत्रु है। मनुष्य महान् होता है-अपने सदाचार से एवं संवम, तप, त्याग के पुरुषार्थ से। मनुष्य अपने अन्तःकरण में निहित ममत्व और विकार भाव के कारण संकुचित और साम्प्रदायिक बनता है। फलतः भाई-भतीजावाद, जातिवाद, साम्प्रदायिकता, प्रान्तीयता, संकुचित राष्ट्रीयवाद ही सामाजिक एवं जातीय संघर्ष के मूल कारण रहे हैं। अतः भगवान महावीर का सन्देश है कि विश्व की सम्पूर्ण मानव जाति एक है, उसे जाति, धर्म, वर्ण, वर्ग, स्त्री-पुरुषभेद, राष्ट्र, भाषा, संस्कृति के नाम पर विभाजित करना, मानवता के प्रति सबसे बड़ा अपराध है। सामाजिक समता एवं समान न्याय के लिए मानवता के कल्याण की, विश्वमानव धर्म की जो समानधर्मा दृष्टि पहावीर ने बतायी उस पर चलना ही आज उनके चरित्र की प्रासंगिकता है। अपरिग्रह आज का बुग अर्थप्रधान एवं यौनप्रधान है। मनुष्य का स्वार्थ एवं कामवासना आज के जीवन संघर्ष के मूलभूत कारण हैं। फलतः समाज धनी और निर्धन, शोषक और शोषित, शासक और शासित, दलित, पीड़ित ऐसे वर्गों में विभाजित होने से जीवन के समस्त क्षेत्रों में संघर्ष व्याप्त हैं। समाज में जो विषमताएँ व्याप्त हैं, उसके मूल में मनुष्य की परिग्रही एवं वासनावृत्ति है। अतः महावीर ने इसके लिए अपरिग्रह, परिग्रह परिमाण और भोग--उपभोग परिमाण के व्रत, अणुव्रत और महाव्रत इन दो स्तरों पर प्रस्तुत किये । 'जिओ और जीने दो' का सन्देश दिया है। पंच अणुव्रतों का पालन करने से समाज में व्याप्त आर्थिक और यौन सम्बन्धी समस्याओं के समाधान हमें प्राप्त हो सकते हैं। भगवान महावीर ने मनुष्य की संचय वृत्ति, एवं कामोपभोग की वृत्ति पर संयम रखने का उपदेश देकर मानव जाति के आर्थिक एवं नैतिक संघर्षों के निराकरण का मार्ग प्रशस्त किया है। 150 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर

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