Book Title: Hindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Author(s): Sushma Gunvant Rote
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 146
________________ उपसंहार महाकाव्य जातीय जीवन और सामाजिक चेतना के आकलन का सांस्कृतिक प्रयास होता है । इस दृष्टि से यदि महाकाव्य की महत्ता पर विचार किया जाए तो वह सर्वोपरि काव्यरूप सिद्ध होता है। वैसे तो शिल्पगत वैशिष्ट्य एवं जीवन दर्शन सम्बन्धी उपलब्धियों के कारण महाकाव्य में महार्थता का समाहार अनिवार्यतः होता है। महाकाव्य सम्बन्धी समस्त मान्यताओं का अध्ययन करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि महानू कथानक, महान् चरित्र, महान् सन्देश और महान् शैली- - इन चार महान् तत्त्वों से संघटित होने पर ही कोई काव्य महाकाव्य की संज्ञा प्राप्त करता है। महाकाव्य की काव्यात्मकता की श्रेष्ठता का मुख्य आधार है कि उसमें नवीन सामाजिक संरचना का उदात्त संकल्प, राष्ट्रीय जीवन का प्रतिनिधि स्वरूप, नवजागरण का महान् उद्घोष, सांस्कृतिक आदर्शों की प्रतिष्ठा, आध्यात्मिक निष्ठाओं का परिष्कार एवं कलात्मक उत्कर्ष होता है। आज के वैज्ञानिक युग में आधुनिकता एवं नवीनता के प्रति विशेष आग्रह पाया जाता है। साथ ही पौराणिक एवं ऐतिहासिक सन्दर्भ में भारतीय संस्कृति के प्रति विशिष्ट रुचि भी दिखाई देती है। भारतीय समाज का मानस मूलतः अध्यात्मप्रवण एवं संस्कृतिमूलक है। साहित्य के माध्यम से यदि नये युग की नयी विचारधारा से समाज में जागृति करनी हो तो पुराणों एवं इतिहास के सर्वश्रुत चरित्रों का आधार ग्रहण करना आवश्यक होता है। पौराणिक एवं ऐतिहासिक चरित्रों का आश्रय ग्रहण कर अपने वांछित कथ्य को हम स्पष्ट कर सकते हैं। वर्तमान युग की खास विशेषता है-ऐतिहासिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण की । आज के युग की माँग है कि ऐतिहासिक महावीर का चरित्र तर्कबुद्धिसम्मत और इतिहाससम्मत हो । महावीर चरित्र लिखने में वैज्ञानिक दृष्टिकोण की अत्यधिक आवश्यकता है। भगवान महावीर के जीवनवृत्त सम्बन्धी अलौकिक और असंगत बातें चित्रित की गयी हैं। उन्हें आज की नयी चेतनाबुद्धि ग्राह्य नहीं मानती । अतः ऐतिहासिक दृष्टि से एवं घटनाओं को तर्कबुद्धि की कसौटी पर कसकर भगवान 152 हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर

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