Book Title: Hindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Author(s): Sushma Gunvant Rote
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 145
________________ अनेकान्त I आज मानव समाज में धार्मिक संघर्ष, जीवन मूल्यों में वैचारिक संघर्ष, राजनीतिक दलों के संघर्ष अपनी चरम सीमा पर हैं। भगवान महावीर के विचारों में इस संघर्ष के मूल में एकान्तवादी दुराग्रही वृत्ति है। दूसरे धर्म, सम्प्रदाय, मतवाद को पूर्णतः मिध्या कहना यही सबसे बड़ा मिध्यात्व (अपराध) है। भगवान महावीर की दृष्टि में सत्य का सूर्य सर्वत्र प्रकाशित होता है। मनुष्य की बुद्धि सीमित है, वह सत्य के किसी अंश को ग्रहण करता है और दूसरों के सत्यांश दर्शन को मिथ्या कहता है अतः दूसरों के विचारों के मतवादों के सिद्धान्तों के सत्यांश का समादर करके वस्तुस्वरूप के पूर्ण सत्य को जानने में प्रयत्नशील रहना चाहिए। मनुष्य की एकान्तबादी, दुराग्रही वृत्ति, वस्तु सत्य को देख पाने में उसे असमर्थ बना देती है। महावीर की शिक्षा आग्रह की नहीं, अनाग्रह की है। सत्य का आग्रही नहीं, सत्य का ग्राही होना है। यही अनेकान्तबादी दृष्टि भगवान महावीर के चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता एवं मौलिकता है। भगवान महावीर ने जिस अनेकान्तवाद को प्रतिपादित किया, उसका मूल उद्देश्य विभिन्न जातियों, धर्मो, वर्गों, राष्ट्रों, भाषाओं, संस्कृतियों के मतवादों के बीच समन्वय और सद्भाव स्थापित करना है। अपने ही धर्मबाद से मुक्ति मानना यही धार्मिक सद्भाव में सबसे बड़ी बाधा है। सर्वधर्मसमभाव अनेकान्तवादी दृष्टि से ही आज के परिवेश में सम्भव है। अतः भगवान महावीर के चरित्र का सबसे बड़ा योगदान है कि उन्होंने हमें आग्रह मुक्त होकर सत्य देखने की दृष्टि प्रदान की है। तदनुसार सम्यक् आचरण करने की प्रेरणा अपने प्रयोगधर्मी चरित्र से प्रदान की है। I इस तरह वीतरागी, अहिंसावादी, मानवतावादी, समतावादी, सहिष्णुतावादी, स्वावलम्बी, पुरुषार्थी, अपरिग्रही संयमी और अनेकान्तवादी सत्यान्वेषी जीवनदृष्टियों को अपनाकर ही आज के सन्दर्भ में भी मनुष्य समस्त संघर्षों से मुक्ति पाकर वास्तविक सुखी एवं सम्पन्न हो सकता है। उनके चरित्रादर्शों को श्रद्धापूर्वक विवेक के साथ आचरण में क्रियान्वित करना ही आधुनिक सन्दर्भ में भगवान महावीर के चरित्र की प्रासंगिकता है। भगवान महावीर के चरित्र की प्रासंगिकता :: 151

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