Book Title: Hindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Author(s): Sushma Gunvant Rote
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 147
________________ महावीर के चरित्र का आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अनुशीलन अनुसन्धान करना युगीन आवश्यकता रही है। भगवान महावीर युगीन व्यवस्था में तर्क और विज्ञान का आश्रय लेना चाहते थे। उन्होंने भावुकता से मोड़ को कभी उत्तेजित नहीं किया। वे वैज्ञानिक विचारों की स्वाभाविक परिणतियों के महापुरुष थे । वे अपने चरित्रादर्शों से व्यक्तियों में कान्ति का शंख फूंकते रहे। इस तरह उन्होंने क्रान्ति की एक ऐसी अन्तर्धारा को जन्म दिया, जो कभी समाप्त नहीं होगी। आज भी उनकी वह धारा उतनी ही जीवन्त और समीचीन है। वस्तुतः वह इतनी शाश्वत है कि किसी भी युगीन सन्दर्भ में काम आ तकती है। इसी अर्ध में वर्तमान परिवेश में भगवान महावीर के चरित्र के आचार एवं विचार पक्ष की प्रासंगिकता है। महावीर को समकालीन समाज व्यवस्था में धर्म का आचरण दम्भपूर्ण और लोभ-परक था । आडम्बर, प्रदर्शन और अहंकार का भाव धर्माचरण में था। अकारण यज्ञ-हिंसा, श्रमिक वर्ग का शोषण, स्त्रियों और शूद्रों पर अन्याय और अत्याचार, धर्म के पुरोहितों ने संगठित होकर अपनी सुविधा प्राप्ति के लिए किया था । यथास्थिति बनी रहे, इसीलिए धर्म के पुरोहितों ने जीवनमूल्यों की व्याख्या मनमाने ढंग से की, जिससे सम्पन्न वर्ग को श्रमिक, पीड़ित, शोषित दलित वर्ग से समस्त लाभ प्राप्त हो सकें। भगवान महावीर के विचारों में सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था विरोध का स्वर गूंजता है । हिंसक, संग्रहशील, दाम्भिक, प्रलोभन और अन्धविश्वासग्रस्त व्यवस्था में आमूल परिवर्तन करने के लिए भगवान महावीर ने समाज के दलित, पीड़ित, शोषित, उत्पीड़ित सर्वहारा ( सर्वस्व लुटा हुआ ) वर्ग के मनुष्य मात्र के हित के लिए आध्यात्मिक और हितकारी सामाजिक व्यवस्था का उद्घोष किया। यही उनके चरित्र का ऐतिहासिक योगदान रहा है। भगवान महावीर स्वयं क्षत्रिय राजपुत्र थे । लेकिन अपनी आन्तरिक करुणा अर्थात् मानवता प्रेम के कारण उन्होंने आत्म-साधना की अपनाकर स्वयं को निर्ग्रन्थ दिगम्बर बनाया। क्योंकि वर्तमान व्यवस्था से बाहर रहकर ही उसमें आमूल परिवर्तन किया जा सकता है । तद् युगीन प्रचलित व्यवस्था के समस्त निरीश्वरवादी विद्रोही- (योगी, आगमानुयायी, व्रात्य) भगवान महावीर, गौतम बुद्ध, कपिल, कणाद, नागार्जुन, सरहप्पा, गुरुनानक आदि ने इस देश में, पुरोहितों, सत्ताधीशों, उच्चवर्णियों और पूँजीपतियों तथा मठाधीशों के जनसाधारण के हित विरोधी रवैयों के विरुद्ध निरन्तर संघर्ष किया और आम आदमी की महत्ता को प्रस्थापित करके उन्हें अध्यात्म एवं लौकिक क्षेत्र में उनके कल्याण के मार्ग प्रशस्त किये । व्यवस्था विरोध के संघर्ष की यह यात्रा युग-युग से बर्तमान युग तक चलती रही हैं। समाज व्यवस्था की रचना में कबीर, नानक, गाँधी जैसे क्रान्तिकारी महात्मा पुरुष प्रयत्नशील रहे हैं। कुद्ध और महावीर ने अपने युग में उपसंहार :: 15:3

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