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जनतन्त्रवादी, परधर्म सहिष्णुतावादी एवं अहिंसा, अनेकान्त और स्याद्वादो
जीवन मूल्यों को पुनः स्थापित किया। (४) जन्म पर आधारित जाति, धन, सत्ता एवं बाह्य वैभव के आधार पर बँटे
मानवीय मूल्यों को, सत्कर्म की श्रेष्ठता के आधार पर स्थापित किया। समता एवं मानवता के मूल्यों के आधार पर नवसमाज-व्यवस्था पर बल
दिया। (4) समाज के सम्पन्न एवं उच्चवर्गीय विद्वानों की मान्य संस्कृत भाषा के
स्थान पर लोकभाषा और लोकजीवन की संस्कृति को महत्त्व देकर लोकभाषा प्राकृत में सरस लोकशैली में प्रवचन-उपदेश करके लोकसाधारण में आत्मविश्वास निर्माण किया। उन्हें ईश्वरवाद भाग्यवाद के जाल से निकालकर आत्मवादी बनाकर निर्भय एवं पुरुषार्थी बनाया। लोकमानव को सर्वोपरि प्रतिष्ठा प्रदान की। सही अर्थों में वे अपने युग के क्रान्तिकारी लोकनायक थे। भगवान महावीर ने श्रावकों (गृहस्थों) एवं श्रमणों को परमात्मा पद की प्राप्ति का मार्ग, "सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः" के रूप में प्रतिपादित किया । साधना मार्ग में संयम, तप, ध्यान, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, अहिंसा, व्रत-उपवास की आचार संहिता का प्रतिपादन किया। साथ ही
लोककल्याण के लिए सतत प्रयत्न करते रहने का भी उपेदश दिया। (6) भगवान महावीर ने 'चतुःसंघ' तीर्घ की स्थापना की। श्रावक-श्राविका के
लिए परमात्म-साधना के लिए आचार-संहिता का पालन यथाशक्ति अंशतः (अणुव्रत) करने का विधान किया, तो मुनिआर्यिका के लिए आचार-संहिता का कटोर एवं परिपूर्ण पालन करने के लिए कहा। सभी
वर्ग-वर्णस्तर के स्त्री-पुरुष उनके संघ में शामिल हो सकते थे। (7) भगवान महावीर का चतुःसंघ धर्म, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य,
अपरिग्रह, संयम, त्याग, समता, तप, स्वाध्याय, ध्यान आदि की श्रेष्ठता
के आधार पर स्थित था। (8) भगवान महावीर ने विचारशुद्धि के लिए अनेकान्तवादी विचारशैली का
अनूटा दर्शन दिया, जिससे जीवन के समस्त विवादों में सुसंवाद स्थापित
हो सके। (७) आचारशुद्धि के लिए अहिंसा दर्शन को प्रतिपादित किया, जिससे समस्त
प्राणिमात्र के प्रति प्रेम, दया, करुणा, समता, सहअस्तित्व, सहिष्णुता आदि भाव निर्माण होकर मानवतावादी, सर्वोदयवादी जीवनदृष्टि हो
सकेगी। (10) निर्दोषवचन की सिद्धि के लिए स्याद्वाद दर्शन की देन विश्व को दी,
भगवान महावीर के चरित्र की प्रासागकता :: 143