________________
की रचना की। उनका समय विक्रम की 15वीं शताब्दी है। यद्यपि उनके पूर्व रचे गये महावीर चरितों के आधार पर हो उन्होंने अपने चरित की रचना की, तथापि उनके विशिष्ट व्यक्तित्व का उनकी रचना में स्थान-स्थान पर प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।
धू ने त्रिपृष्ठ के भव का वर्णन करते समय युद्ध का वर्णन और उसके नरक में पहुँचने पर वहाँ के दुःखों का बहुत विस्तार से वर्णन किया है। गौतम के दीक्षित होते ही भगवान की दिव्यध्वनि प्रकट हुई। इस प्रसंग पर स्यधू ने पटू-द्रव्य और सप्त तत्त्वों का तथा श्रावक और मुनिधर्म का विस्तृत वर्णन किया है। अन्त में रयधू ने भगवान के निर्वाण कल्याण का वर्णन करके गौतम के पूर्व भव एवं भद्रबाहु स्वामी का चरित्र भी लिखा है ।
सिरिहर - विरचित - वड्ढमाणचरिउ - कवि श्रीधर ने अपने वर्द्धमान चरित की रचना अपभ्रंश भाषा में की है। यद्यपि भगवान महावीर का कथानक एवं कल्याणक आदि का वर्णन प्रायः वही है, जो कि दिगम्बर परम्परा के अन्य आचार्यों ने लिखा है, तथापि कुछ स्थल ऐसे हैं जिनमें दिगम्बर परम्परा से कुछ विशेषता दृष्टिगोचर होती है । त्रिपृष्ठनारायण के भव में सिंह के मारने की घटना का वर्णन प्रस्तुत ग्रन्थकार ने किया है।
गौतम को इन्द्र समवसरण में ले जाते हैं। वे भगवान से अपनी जीव - विषयक शंका को पूछते हैं। भगवान की दिव्य ध्वनि से उनका सन्देह दूर होता है और वे जिन - दीक्षा ग्रहण करते हैं। गौतम ने पूर्वाह्न में दीक्षा ली और अपराह्न में द्वादशांग की रचना की।
जयमित्तल - विरचित वर्द्धमान काव्य - यह काव्य कवित्व की दृष्टि से बहुत उत्तम है। इसमें भगवान का चरित दिगम्बरीय पूर्व परम्परानुसार ही है। कुछ स्थलों का वर्णन बहुत ही विशेषताओं को लिये हुए है । केवलज्ञान प्राप्त हो जाने पर दिव्यध्वनि प्रकट होने तक निर्ग्रन्थ मुनि आदि के साथ तीर्थंकर इस धरातल पर छियासठ दिन विहार करते रहे। अन्य चरित वर्णन करनेवालों ने भगवान के बिहार का इस प्रकार उल्लेख नहीं किया है। समग्र ग्रन्थ में दो प्रकरण और उल्लेखनीय हैं- सिंह को सम्बोधन करते हुए 'जिनरत्तिविधान' तप का तथा दीक्षा कल्याणक के पूर्व भगवान द्वारा 12 भावनाओं के चिन्तवन का विस्तृत वर्णन किया गया है। कवि जयमित्रहल ने इस बात का भी उल्लेख किया है कि भगवान महावीर अन्तिम समय में पावापुरी के बाहरी सरोवर के मध्य में स्थित शिलातल पर जाकर ध्यानारूढ़ हो गये और वहीं से बांग निरोध कर अघाति कर्मों का क्षय करते हुए निर्वाण को प्राप्त हुए ।
जैनधर्म के 24 तीर्थकरों और अन्य शलाकापुरुषों के चरित्र पर अपभ्रंश में विपुल और श्रेष्ठ साहित्य हैं। पुष्पदन्त कृत 'महापुराण' (शक सं. 887 ) यह सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वकाव्यगुणों से सम्पन्न महाकाव्य है। इसमें कुल 102 सन्धियाँ हैं। इनमें महावीर का जीवन चरित्र सन्धि 45 ते अन्त तक यणित है। कवि श्रीधर ने भी
36 : हिन्दी के महाकाव्यों म चित्रित भगवान महावीर