Book Title: Hindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Author(s): Sushma Gunvant Rote
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 57
________________ कलश, मछलियों की जोड़ी, कमलों से शोभित एक सरोवर आदि सोलह सपनों का निवेदन रानी त्रिशला ने सिद्धार्थ के सामने किया। तीर्यकर के गर्भ में आने पर स्वर्ग की देवियाँ शुश्रूषा के लिए त्रिशला के महल में उपस्थित होती हैं। चौथा सर्ग-स्वप्नफल-कथन चौथे सर्ग में राजा सिद्धार्थ भरी सभा में ज्योतिषियों, विद्वानों को बुलाकर इन सोलह सपनों के फलों के बारे में विचार-विमर्श करते हैं। "इस युग के अन्तिम तीर्घकर तव कान्त-कुक्षि में आये हैं। उनके गरिमामय गुण ही इन, सपनों ने हमें बताये हैं।” (वही, पृ. 130) इस प्रकार अभिप्राय देकर हर एक स्वप्न का अन्वयार्थ स्पष्ट करते हैं। पाँचवाँ सर्ग-गर्भकल्याण शरदूऋतु के सौन्दर्य का विस्तार से वर्णन किया गया है। त्रिशला के गर्भवती होने के कारण राजा सिद्धार्थ रानी त्रिशला के अन्तःपुर में आकर त्रिशला के साथ धार्मिक विषयों की चर्चा करते हैं। उसकी प्रकृति और मनःस्थिति को स्वस्थ रखने के लिए हर तरह की व्यवस्था करते हैं। कवि ने हेमन्त ऋतु के वातावरण का सर्ग के अन्त में सुन्दर चित्रण किया है। छठा सर्ग-जन्म-कल्याण कवि ने प्रारम्भ में सूर्योदय का चित्रोपम शैली में वर्णन अंकित किया है। रानी त्रिशला, महल में दासियों के साथ धर्मचर्चा करतो रहती है, और उनके द्वारा पूछे गये सभी प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत करती है। फिर वसन्त ऋतु का चित्रण किया है । ऐसे मोहक वातावरण में महावीर का जन्म हुआ, जिससे जिनेन्द्र के जन्म होते ही प्रकृति के समस्त प्राणी-मात्र में हर्ष उल्लास का वातावरण छा जाता है। दासियों ने राजा सिद्धार्थ को पुत्र-जन्म की वार्ता बतायी। राजा सिद्धार्थ ने जन्मोत्सव मनाने के लिए आदेश दिया। सातवाँ सर्ग-जलाभिषेक नगर-सज्जा, उत्सव-व्यवस्था, उत्सव-आरम्भ, संगीत-प्रभाव तथा अन्य आयोजन का विस्तार के साथ वर्णन किया है। कुण्डग्राम में स्वर्ग के देवेन्द्र का सपरिवार जिनेन्द्र-दर्शन के लिए आगमन होता है । जन्माभिषेक के लिए इन्द्र मेरु पर्वत पर जाते हैं। सभी जिनेन्द्र की भक्तिभाव से स्तुति करते हैं। इन्द्र और इन्द्राणी ने मायावी शिशु को निद्रित त्रिशला के पास रख दिया। वे जिनेन्द्र को सुमेरु पर्वत की ओर लेकर चले। वहाँ पर एक हजार आठ कलशों से जलाभिषेक किया। इन्द्राणी ने बालक जिनेन्द्र का आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों में वर्णित महावीर-चरित्र :: 63

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