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पंचदश सर्ग-युगान्तर
अन्तिम सर्ग युगान्तर में कवि ने मोक्ष के बाद मुक्तेश्वर महावीर के प्रभाव का वर्णन करके निम्नलिखित त्यातों पर प्रकाश दाता है-महावीर बाङ्मय की जीवन और जगत् को देन, भाव-जगत् और राष्ट्र-धर्म, वीर-वाणी की चेतना, वीर-दर्शन का जीवन में उपयोग, जैनधर्म से देश और दुनिया में उपलब्धियाँ, महावीर पूजा के आदर्श, पूज्य महात्मा गाँधी भगवान महावीर के पथ पर, स्वतन्त्रता प्राप्ति में वीर-वाणी का योग, आज की परिस्थितियों को दिशा-दान, वीर मार्ग, वीर-वाङ्मय, वीरार्चन आदि तथ्यों के चित्रण के माध्यम से भगवान महावीर के व्यक्तित्व को 'मित्र' जी ने युगान्तकारी, नवयुग प्रवर्तक के रूप में रेखांकित किया है। निष्कर्ष
भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित स्यादवाद, अनेकान्त, अहिंसा, तप, संयम आदि का विस्तार के साथ वर्णन करके उनके व्यक्तित्व के आन्तरिक-आध्यात्मिक विशेषताओं का चित्रण अत्यन्त प्रभावपूर्ण ढंग से किया है। महाकाव्य 'बीरायन' में कुल पन्द्रह सर्ग हैं। सर्गों के शीर्षकों पर गौर करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि कवि ने भगवान महावीर को अपना आराध्य भगवान माना है। अतः छन्दों के माध्यम से भगवान महावीर के चरित्र को पुष्पमालाओं, स्तुति सुमनों से सुरभित किया है। दिगम्बर मान्यता के अनुसार पौराणिक अनुश्रुतियों का आधार लेकर गर्म, जन्म, तप, ज्ञान एवं मोक्ष आदि पंचकल्याणकों के चित्रण द्वारा भगवान महावीर के अलौकिक चरित्र का प्रभावी ढंग से चित्रण किया है।
प्रासादिक शैली में इस ग्रन्थ की स्वाभाविक ध्वनि में रचना हुई है। रचना में गति है और गहराई भी। काव्य में ओज है, सुन्दर वर्णन है, करुणा है और ललकार भी है। शिल्प की अपेक्षा कथ्य को महत्त्व देने के कारण काव्य में यत्र-तत्र दार्शनिक एवं उदात्त विचारों का विश्लेषण अधिक मात्रा में हुआ है। छन्द-रचना में कवि सिद्धहस्त है। भगवान महावीर के मनोवैज्ञानिक चित्रण में उसको अच्छी सफलता प्राप्त हुई है। पौराणिक कथावस्तु एवं चरित्र पर आधुनिकता का रंग भरने में कवि सफल हुआ है। विश्वबन्धुत्व, राष्ट्रीयता, मानवतावाद, सर्वधर्म समभाव आदि आधुनिक चिन्तन-धाराओं के विश्लेषण से भगवान महावीर के चरित की उदात्तता को अधिक स्पष्ट किया गया है। 'तीर्थंकर महावीर' महाकाव्य
अवन्तिका के प्रसिद्ध शब्दशिल्पी डॉ. छैलबिहारी गुप्त का 'तीर्थंकर महावीर' महाकाव्य इन्दौर को श्री वीर निर्वाण ग्रन्थ प्रकाशन समिति की ओर से मध्यप्रदेश शासन के वित्तीय सहयोग से मार्च, 1976 में प्रकाशित हुआ। इस महाकाव्य में आ 74 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित 'भगवान महावीर