Book Title: Hindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Author(s): Sushma Gunvant Rote
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 100
________________ “जब प्रबल कर्म अरि दल से टक्कर लेना यौं महावीर योद्धा महान् बलशाली।" (वही, पृ. 173) . वर्तमान की वीरता, महावीरता, अतिवोरता भौतिक पक्ष को लेकर नहीं. आध्यात्मिक पक्ष की दृष्टि से समझना चाहिए। अर्हत् रूप-आत्मा अनन्त वैभव का पुंज है। उसका मूल वैभव अतुलनीय है। अपने ही आत्म-पुरुषार्थ से अपने अनन्त चतुष्टय दर्शन, ज्ञान, सुख, बीय) को प्रकट करने ते तथा संयर-तप की साधना से यह आत्मा परम शुद्ध परमात्मा बनती है। परमात्मा, भगवान, सिद्ध, तीर्थंकर, गॉड (God) आदि हजारों नाम हैं-शुद्धस्वरूप आत्मा के। जैन परम्परा में ईश्वर के दो रूप हैं-साकार, निराकार। सगुण (देहसहित) अवस्था में अर्हन्त की सम्पूर्ण काया से दिव्यध्वनि प्रस्फुटित होती है जो प्रत्येक प्राणी को कल्याणकारी उपदेश देती है और जिसे पशु-पक्षी भी अपनी-अपनी भाषा में सुनते हैं तथा आत्मकल्याण करते हैं। केवली अरिहन्त चार अंगुल अन्तराल में स्थिर रहकर दिव्यध्वनि के द्वारा उपदेश देते हैं। तीर्थंकर को दिव्यध्वनि सर्वांगीण और ॐकार रूप निरक्षरमय रहती है। ध्वनि प्राकृत भाषा में गूंजती थी। कवि रघुवीरशरण 'मित्र' लिखते हैं... "तीर्थंकर की दिव्यध्वाने, सुनते हैं जो लोग उनको जीवन में कभी, रहता शोक न रोग।" (वीरायन, पृ. 298) सिद्धरूप-भगवान महावीर की सिद्धावरया से तात्पर्य है-आत्मा की मुक्तावस्था। मुक्ति का अर्थ बन्धन से छूटना है अर्थात् पूर्ण स्वतन्त्रता को उपलब्ध होना। मुक्ति की अवस्था में जीव सदाकाल निज आनन्द रस में लीन रहता है, उससे कभी चलायमान नहीं होता। संक्षेप में, वेशभूषादि के विवेचन में हमने देखा है कि स्वर्ग के इन्द्रों द्वारा शिशु वर्द्धमान के वेशभूषा के परिधान भेजने के विवरण मिलते हैं। वाह्य वैभव विलास प्रदर्शन में विरागी वर्द्धपान की रुचि नहीं के समान दिखाई देती है। वे महलों में योगी के रूप में ही दिखाई देते हैं। ऐतिहासिक महापुस्प महावीर को पौराणिक परिवेश में प्रस्तुत करते समय उनकी आकृति, रूप-सौन्दर्य, वेश, आभूषण आदि के वर्णन में अलौकिकता, दिव्यता का आधार अतिशयोक्तिपूर्ण चमत्कारपूर्ण ढंग से दिखलाना कवि सुलभ सहज प्रवृत्ति का द्योतक है। भगवान महावीर के श्रमण रूप की पवित्रता एवं दीर्घ साधना की अभिव्यक्ति से वर्द्धमान को निर्भयता, शूरता एवं पुरुषार्थ का प्रभाव पाठकों के चित्त पर अमिट रूप ते पड़ता है। एक दीर्घ, कठोर तपस्वी की प्रतिमा का महान ऋषि की महानता का-उसकी अलौकिक दिव्यता का बोध प्रेरणादायी है। केवली अर्हत् रूप का 106 :: हिन्दी के महाकायों में चित्रित 'भगवान महावीर

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