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कठोर तपस्या करके वीतरागी अर्हन्त पद को प्राप्त किया। विश्व के समस्त मानव मात्र को आत्मोत्थान का हितोपदेश देकर विश्वमानव का कल्याणकारी कार्य किया। अतः वे युगान्तकारी नवयुग के प्रवर्तक माने जाते हैं। युगीन रूद्धि, परम्परा, वर्ण, वर्ग, आश्रम, लिंगभेद, नारी की दासता, विषमता आदि के प्रति विद्रोह करके नवमानवतावादी, समतावादी मान्यताओं की स्थापना की। भौतिक जीवन के प्रति निवृत्ति - विरक्ति अपनाते हुए भी वे आध्यात्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक क्षेत्र में कार्यप्रवणशील प्रवृत्ति सेक्रान्तिकारी महामानव बने। महामानव तीर्थंकर भगवान महावीर के चरित्र में प्रवृत्ति एवं निवृत्ति का सुन्दर समन्वय दृष्टिगोचर होता है। वे वीतरागी होते हुए भी चतुःसंघ के कर्णधार थे। भगवान महावीर के चरित्र का अध्ययन करते समय केवल उनके आध्यात्मिक साधनापरक मुनिदशा तथा भगवान रूप का ही अधिक विवेचन होता रहता है, लेकिन उनकी श्रमण-साधना की उपासना पद्धति पर जो सामाजिकता का, मानवतावाद का, समतावाद का भी पुत्र चढ़ा हुआ है, उसका अनुशीलन आधुनिक सन्दर्भ में करने की आवश्यकता है।
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सामाजिकता की प्रवृत्ति भगवान महावीर का यह संवेदनाशील व्यक्तित्व साधारण जन के लिए अज्ञात ही रहा है। भगवान महावीर का आध्यात्मिक व्यक्तित्त्व जितना महत्त्वपूर्ण हैं, उतना ही उनका विश्वमानव कल्याणकारी सामाजिक व्यक्तित्व महत्त्वपूर्ण है। डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी का कथन हैं, “निश्चय ही भगवान महावीर के अन्तस्तल में भी यह सहज महाप्रेमिक मानव विद्यमान था। ब्रह्मचर्य, तप, कठोर साधना और दिव्य ज्ञान के प्रकाश से हमारी आँखें प्रायः चौंधियाँ जाती हैं और हम उस सहज मानव को नहीं देख पाते, परन्तु जो बात कृच्छ्राचार और तपस्या को मनुष्य के लिए ग्रहणीय और आचरणीय बनाती हैं, वह है महान् गुरु का सहज मनुष्यत्व ।"" वीतरागी वृत्ति का चरित्र मानव को कमजोर, निष्क्रिय नहीं बनाता, बल्कि मानव कल्याण- सुख का पथ-दर्शन कराते हुए समाज व्यवस्था को सुदृढ़ता एवं स्वस्थता प्रदान करता है। भौतिक जीवन के सर्वस्व को त्यागकर बने वीतरागी पुरुष ही संसार में महान् क्रान्ति, महान् कार्य करके 'महावीर' बनते हैं। वैराग्य भावना से मनुष्य में त्याग की प्रेरणा निर्मित होती है। भौतिक पंचेन्द्रियों के विषयोपभोगों की ओर से निवृत्त होकर वह अपने आत्मोद्धार से समस्त मानव के उत्थान, कल्याण के लिए चिन्तनशील क्रियाशील रहता है। भगवान महावीर का वैराग्य पूर्ण मुनिजीवन कविकल्पित या पुराणमतवादी नहीं है, वह इतिहास-तम्मत हैं। भगवान महावीर का तीर्थंकरत्व का व्यक्तित्व कर्तृत्वसम्पन्न, वीतरागता के साथ समाजकल्याणपरक था । अतः युग-युग तक वे पूजे जा रहे हैं। अतः महावीर के तीर्थंकरत्व के लिए कारण बनी वैराग्यमूलक अन्तःप्रेरणाओं का स्वरूप महत्त्वपूर्ण हैं |
1. डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री तीधंकर महावीर का पुरोवाक्, पृ.
126 | हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर