Book Title: Hindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Author(s): Sushma Gunvant Rote
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 118
________________ (11) तरंगित अथाह सागर : ग्यारहवें स्वप्न में भयंकर मगरमच्छ आदि स्वच्छन्द क्रीडा करनेवाले जन्तुओं से परिपूर्ण विशाल समुद्र देखा जो शुभफेन राशि तथा उन्नत लहरों से अलंकृत था। समुद्र-दर्शन सूचित करता है कि पुत्र की बुद्धि समुद्र के समान गम्भीर होगी तथा वह अनेक नीति रूपी नदियों से परिपूर्ण शास्त्र का समुद्र होगा। उत्तम मार्ग का उपदेश देकर जीवों को संसारन्तागर से पार करेगा। अथाह सागर हृदय की विशालता का प्रतीक है। बालक के हृदय की विशालता अहिंसात्मक विधि से जीवों को यथार्थ सुख का उपाय बताएगी। (12) स्वर्ण सिंहासन : बारहवें स्वप्न में लक्ष्मी का स्वर्ण-सिंहासन देखा जो तेजस्वी सिंहों से अलंकृत था। उत्कृष्ट रलमयी सिंहासन के दर्शन का यह फल है कि तुम्हारा पुत्र समस्त जगत् पर आज्ञा चलाएगा। मणिजडित सिंहासन वर्चस्व और प्रभुत्व का सूचक है। आभ्यन्तर सम्पदा का स्वामी अनन्त चतुष्टयधारी होगा। (13) रत्नों से अलंकृत देव-विमान : तेरहवें स्वप्न में आकाश में गमन करता हुआ सुन्दर विमान दिखाई दिया जो मुक्ता (मोती) मालाओं से देदीप्यमान था। इस विमान स्वप्न का अन्वयार्थ आलोच्य महाकाव्यों में स्पाट किया गया है। कवि का वर्णन है *देव विमान दिखा जो नभ में, अन्तर का उत्थान महान् । देव विपूजित जीव प्रकट हो, इसे सत्य करके लो जान ।" (श्रमण भगवान महावीर, पृ. 66) सुन्दर विमान दर्शन से सूचित होता है कि तुम्हारा पुत्र निरहंकारी मनुष्यों का स्वामी होगा । देव विमान कीर्ति का प्रतीक है। स्वर्ग से च्युत हो जीव गर्भ में आएगा। लोक में सर्वत्र कीर्ति फैलेगी। सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की एकता रूप मोक्षमार्ग का नेता होगा। (14) पृथ्वी से उठता हुआ नागेन्द्र का गगनचुम्बी भवन : चौदहवें स्वप्न में उदयाचल पर्वत पर नागेन्द्र का गगनचुम्बी भवन देखा। भवन सर्व सुविधायुक्त है। भवन का निचला भाग अरुण मणियों के समान कान्तिमान है। ऊर्ध्वभाग रत्नाभ है। भवन के अग्रभाग में चन्द्रकान्त मणियों की कान्ति जलप्रवाह का भ्रम उत्पन्न करती है । पृथ्वी को भेदकर निकला हुआ नागेन्द्र भवन सूचित करता है कि तुम्हारा पुत्र इस संसार रूपी पिंजरे को खण्ड-खण्ड करेगा और वह मति, श्रुत तथा अवधिज्ञान रूप त्रिविध ज्ञान नेत्रों को प्राप्त करेगा। नागेन्द्र का भवन अवधिज्ञान का प्रतीक है। बालक जन्म से ही अवधिज्ञानी होगा। धर्मान्धता का लोप कर शुद्ध आत्मधर्म का संस्थापक होगा। समस्त जगत् में मैत्री भाव निर्माण करेगा। (15) रलों की राशि : पन्द्रहवें स्वप्न में रत्नों की राशि देखी जो रंग-बिरंगी कान्ति से इन्द्र-धनुष तुल्य लगती थी। अनेक प्रकार की रत्नों को राशि के दर्शन से 124 :: हिन्दी के महाकायों में चित्रित भगवान महावीर

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