Book Title: Hindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Author(s): Sushma Gunvant Rote
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 103
________________ सकता है। लेकिन सहजात अनुभावों को दवाना कठिन है। अतः पात्रों की क्रिया-प्रतिक्रिया की अपेक्षा उनके अनुभावों के आधार पर उन्हें समझना अधिक विश्वसनीय होता है। व्यवहारकुशल राजनीतिक पात्रों की क्रिया-प्रतिक्रिया बहुधा बनावटी होती है । ऐसे पात्रों का वास्तविक रूप उनके अनुभावों से ही स्पष्ट होता है, और क्रिया-प्रतिक्रिया की जो कृत्रिमता होती है, उसकी पोल खुल जाती है। इन सभी कारणों से पात्रों का मूल रूप जानने के लिए उनके अनुभावों का अध्ययन आवश्यक है। उसी प्रकार पात्रों के सफल चित्रण के लिए उनके अनुभावों का चित्रण भी परम आवश्यक हैं। अब हम यह देखेंगे कि भगवान महावीर का चरित्र चित्रण करते समय आलोच्य महाकाव्यों के कवियों को भगवान महावीर के अनुभावों का चित्रण करने में कहाँ तक सफलता मिली हैं? भगवान महावीर का चरित्र विरागी वृत्ति से परिपूर्ण हे अतः उनके जीवन में घात - प्रतिघात संघर्ष के लौकिक प्रसंग बहुत कम मात्रा में चित्रित हुए हैं। उनका संघर्ष आन्तरिक विकारों से था और संघर्ष के शस्त्र थे मौन रहकर संयमपूर्वक ध्यान, तप करना । अतः उनकी मुद्रा पर भौतिक सुखों से उदासीनता की छटा और आत्मानन्द की प्रसन्नता का सुन्दर समन्वय दिखाई देता है। अनुभावों के द्वारा क्रिया-प्रतिक्रिया का चरित्र-चित्रण उनकी किशोर अवस्था की क्रीड़ाओं एवं लीलाओं के चित्रण में किये गये हैं, उनमें अनुभावों के दृश्य प्राप्त होते हैं। उन्मत्त हाथी को वश करने के लिए जिस साहस के साथ प्रभु वर्द्धमान ने मुठभेड़ की उसे कवि के निम्नांकित छन्द में हम देख सकते हैं " सिंह सदृश केहरि सम्मुख, जा खड़े हुए भय-भाव-रहित, मदमाता हाथी सूँड़ उठा, झपटा इन पर अति वेग- सहित । पर वीर सूँड़ से चढ़े शीघ्र, उसके मद विगलित मस्तक पर, गज सहम गया मद भूल गया, पा शासन सन्मति का शिर पर ।" ( तीर्थंकर भगवान महावीर, पृ. 89 ) उक्त छन्द में किशोर बर्द्धमान के अनुभावों का स्पष्ट चित्रण है। कवि ने प्रभु बर्द्धमान की युवा अवस्था में उनकी वासना और विवेक के संघर्ष का वर्णन करते हुए अनुभावों द्वारा महावीर के चरित्र का चित्रण किया है। वासना जब प्रबल होती है तब शरीर के विभिन्न अंगों में हलचल होती है। कवि के शब्दों में "तन गयी थी अस्थि मज्जा और नस-नस द्वन्द्व में पड़कर हुआ वह वीर बेबस ।” ( श्रमण भगवान महावीर चरित्र, पृ. 1006) युवा अवस्था में वासना के कारण प्रभु के शरीर में जो क्रिया-प्रतिक्रिया उत्पन्न होती थी उस दृश्य को निम्न छन्द में चित्रित किया है भगवान महावीर का चरित्र-चित्रण :

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