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चतुर्थ सर्ग-जन्म-ज्योति
प्रस्तुत सर्ग में भगवान महावीर के गर्भकल्याण की उपलब्धियों का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसमें जन्मोत्सव का चित्रण है। शिशु महावीर के चमत्कारों को श्रद्धा से अभिव्यक्त किया है। शिशु क्रीड़ा, शिशु लीला का भी मनोहारी चित्रण है।
जन्म ज्योति' मर्ग में निम्नलिखित प्रसंगों का विवरण है-त्रिशला-सिद्धार्थ प्रकरण, संचोग-दर्शन, पति-पत्नी-प्रसंग, वधू-स्वागत, दाम्पत्य जीवन के सूत्र, रसवार्ता, प्रीति, प्रभा, शृंगार, सूक्तियाँ, कापानन्द, सोलह स्वप्न, गर्भ कल्याणक उपलब्धियाँ, भगवान के जन्म से पूर्व का वातावरण। सुख-वर्षा, जन्मोत्सव-संगीत, इन्द्र-इन्द्राणी द्वारा भगवान का अर्चन, सुर-असुर, राजा-प्रजा द्वारा वीर पूजा, शिशु के चमत्कार, शिशु का वैराग्य दर्शन, तोरी लालित्य, नाम-महिमा, भारत माता द्वारा आनन्द, शिशु-क्रीड़ा, शिशु-लीला, शिशु की रीझ-खीझ, शिशु से सुख, बाल दिगम्बर का मनोहर चित्रण किया गया है। पंचम सर्ग-बालोत्पल
बालोत्पल में भगवान महावीर के बाल-जीवन का निम्नलिखित प्रसंगों के माध्यम से विस्तार से विवरण दिया है
बाल-जीवन, बाल-आदर्श, खेल-खेल में ज्ञान, बाल-गुरु वीर, बालकों में भगवान, बाल-परीक्षा, वाल-चमत्कार, सत्संग-महिमा, सम्यक् स्वरूप, माता-पिता, माता का आश्चर्य, माता त्रिशला का सेवादर्श, सब बच्चों में समान स्नेह, वीर बाल मित्रों के साथ, त्रिशाला माता का वीर-सखाओं का बाल-भोज करना आदि का चित्रण किया है।
इन्द्रलोक में बीर-ज्योति, रूप शक्तियों का आश्चर्य, 'संगमदेव' का गर्य, 'संगम' का बाल-वीर की परीक्षा के लिए प्रस्थान, संगम का नाग रूप धारण कर वीर-सखाओं में आमगन । वीर की अन्तरंग शक्ति का प्रकाश, अनन्त बल दर्शन, संगमदेव का मदचूर, 'संगम' को ज्ञान, 'संगम' का हार जाना, बाल पहावीर की गरिमा का भी चित्रण प्रकाशित है।
वर्द्धमान की अतिशयता (अतिपवित्र) इस प्रकार की थी कि साधारण-सी गाय भी उनके सान्निध्य में आये तो वह कामधेनु बन जाती थी। बालक वर्द्धमान का व्यक्तित्व ऐसा था कि उनकी आँखों में सदैव निर्वेद भाव झलकता था। उनकी जिहा पर सरस्वती का निवास था। माता ने बालवर्द्धमान को जो आभूषण पहनाये. उनसे भी ज़्यादा तेज बालक के मुस्कुराहट की थी। आभूषणों से युक्त बालक की सुन्दरता का वर्णन अद्वितीय है। बालक वर्द्धमान के देह का सौन्दर्य दिव्य, अलौकिक तथा अप्रतिम था। स्वर्ग की अप्सराओं का सौन्दर्य भी उनके समक्ष मन्द है।
इन्द्र द्वारा की गयी प्रशंसा को सुनकर संगमदेव सर्प रूप धारण करके भूतल पर जाता है। महावीर की बीरता की परीक्षा लेना चाहता है। तब इन्द्र कहते हैं70 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर