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महावीर चरियं (वि.सं. 1141) नेमिचन्द्र सूरि ने पूर्णतः प्राकृत पद्मवद्ध महावीर चरित काव्य लिखा। इसमें मरीचि से लेकर महावीर तक 26 भवों का वर्णन है। इसकी कुल पद्य संख्या लगभग 2100 है।
निष्कर्ष
भगवान महावीर का निर्वाण ई. पू. 527 में हुआ। इन्द्रमृति गौतम ने अपने गुरु के जीवन और उपदेशों की समस्त सामग्री बारह अंगों में संकलित की। बारहवें अंग दृष्टिवाद में एक अधिकार प्रथमानुयोग भी था । उसमें समस्त तीर्थंकरों और चक्रवर्तियों
आदि महापुरुषों की वंशावलियों का पौराणिक विवरण संग्रह किया गया, जिसमें तीर्थंकर महावीर और उनके ज्ञातृवंश का इतिहास भी सम्मिलित था। दुर्भाग्य से गणधर गौतम द्वारा निवद्ध वह साहित्य अब अप्राप्य है लेकिन उसका संक्षिप्त विवरण समस्त उपलब्ध आगम साहित्य में बिखरा हुआ पाया जाता है। उसका उल्लेख विवेचन में किया गया है। जागम के अंग, उपांग प्रकीर्णक, छेदसूत्र, मूलसूत्र, नियुक्ति, भाष्य, चूणिं, टीका, कथा एवं चरित साहित्य में महावीर के प्रामाणिक जीवनवृत्त, मूल दार्शनिक, नैतिक और आचार सम्बन्धी विचारों का विस्तार से परिचय प्राकृत साहित्य में प्राप्त होता है।
संस्कृत में महावीर-चरित्र
जैन कवि और दार्शनिकों ने प्राकृत के समान ही संस्कृत में भी अपने काव्य एवं दर्शन की रचनाओं द्वारा उसके साहित्य को समृद्ध बनाया है। जैनाचार्यों ने काव्य के साथ आगम, अध्यात्म, आचार आदि विषयों पर संस्कृत में ग्रन्ध लिखे।
त्रिषष्टि-शलाका-पुरुष चरित्र-श्री हेमचन्द्राचार्य रचित यह ग्रन्थ संस्कृत जैन साहित्य में अपना विशिष्टतम स्थान रखता है। दस पर्षों में विभक्त इसमें तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव आदि 6s महापुरुषों का जीवन वर्णित है। दसवाँ पवं महावीर विषयक है।
तेरह सर्गों में विभक्त इस पर्व में महावीर के जन्म, विवाह, दीक्षा, केवलज्ञान, निर्वाण आदि का वर्णन काव्यमय शैली में किया गया है। त्रिशला व देवानन्दा वर्णन, क्षत्रिय व ब्राह्मणकुण्ड, कुण्डग्राम आदि का विशद वर्णन प्रस्तुत करता है। युवाकाल में महावीर तप की ओर उन्मुख हुए। अपने वैभव पूर्ण जीयन को त्याग उन्होंने भरी जवानी में दीक्षा ग्रहण कर ली, केवलज्ञान की प्राप्ति हेतु वे साधना में तल्लीन हो गये। अन्ततः अपनी कठोरतम साधना से उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ। चतुर्विध संघ की स्थापना कर वे जन-जागृति के लिए निकल पड़े। अनेक राजा एवं राजकुमारों ने महावीर से दीक्षा ले श्रावक धर्म स्वीकार किया। इस तरह पहाबीर की जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं के संकेत इस ग्रन्थ से प्राप्त होते हैं।
भगवान महावीर की जीवनी के खोत :: ५५