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" आकम्पियो यजेणं, मेरु अंगुट्ठएण लीलाए । तेणेह महावीरो नाम सि कथं सुरिन्देहि । "
(विमलसूरि : पउमचरिय, पृ. 2/26)
“अणुवच महव्वाएड य, वालतवेण य हवन्ति संजुत्ता | ते होन्ति देवलोए, देवा परिणाम जोगेण ॥" (वही, पृ. 2/ 92 )
महावीर की महत्ता पर पर्याप्त प्रकाश इस ग्रन्थ में डाला गया है। माता-पिता, बचपन, विरक्तभाव, दीक्षा, तप, केवलज्ञान, समवसरण, उपदेश, श्रेणिक श्रद्धा, स्तुति आदि विविध प्रसंगों को बड़ी ही कुशलता के साथ प्रस्तुत किया गया है। द्वितीय समुद्देश भी महावीर की महत्ता से पूर्ण है। महावीर का उपदेश युग को उभारने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, जिसमें अणुव्रतों के पालन से देवरूप प्राप्ति का उल्लेख है ।
जंबूचरियं ( जम्बूचरित ) - ग्यारहवीं शताब्दी में गुणपाल मुनि ने प्राकृत में यह चरित काव्य लिखा है। जैन आगम के अनुसार जम्बु स्वामी ने श्रमण दीक्षा ग्रहण की। गुरु सुधर्म ने महावीर के उपदेशों को जम्बू मुनि को सुनाया। अतः प्राचीन जैन आगमों में महावीर के उपदेशों का उल्लेख जम्बूमुनि के सन्दर्भ में मिलता है। 'जम्बूचरिय' में जम्बूस्वामी का चरित्र वर्णित है। वे अन्तिम केवली माने जाते हैं। राजा श्रेणिक महावीर से जम्बूस्वामी के चरित को लेकर प्रश्न करते हैं। उसके उत्तर में महावीर ने उनके पूर्वभवों का वर्णन किया है।
जयन्तिचरियं - यह काव्यग्रन्थ मानतुंग सूरि ने लिखा है, जिस पर उनके शिष्य मलयप्रभसूरि ने टीका लिखी है। जयन्ति ने महावीर से जीव और कर्म विषयक अनेक प्रश्न पूछे। उनके उपदेश से प्रभावित होकर जयन्ति ने महावीर से श्रमण-दीक्षा ग्रहण की थी।
स्तुति स्तोत्र - प्राकृत में 'महावीरथव' नन्नसूरि का प्रसिद्ध स्तोत्र ग्रन्थ है 1 देवेन्द्रसूरि का 'वीरचरित्रस्तव' भी महावीर की वरीयता को उजागर करता है । 'वीरस्तुति' एवं 'बीरजिनस्तोत्र' ये दो प्राकृत ग्रन्थ क्रमशः जैन मन्दिर अजमेर व जैन मन्दिर भरतपुर में उपलब्ध हैं I
तिलोयपण्णत्ति - शौरसेनी प्राकृत में यतिवृषभ ने यह महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा है। इसमें प्राकृत गाथाओं में हमें तीर्थंकरों और अन्य शलाका पुरुषों के चरित्र नामावली - निबद्ध प्राप्त होते हैं। इसमें महावीर की जीवन-विषयक प्रायः समस्त यातों की जानकारी संक्षेप में स्मरण रखने योग्य रीति से मिल जाती है ।
चउपन्नमहापुरिस चरियं (वि.सं. 925 ) - शीलांक कवि ने इसमें महावीर का जीवन चरित्र प्राकृत गद्य में वर्णित किया है।
महावीर चरियं (वि. सं. 1139 ) - पूर्णतः स्वतन्त्र प्रबन्ध रूप से महावीर का चरित्र 'गुणचन्द्र सूरि' ने आठ प्रस्तावों में प्रस्तुत किया है। प्रथम चार में महावीर के मरीचि आदि पूर्वभवों का विस्तार से वर्णन है।
32 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर