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भिन्न है। प्राचीन जैन साहित्य के आचायों की परम्परा को पाँच भागों में विभाजित किया जाता है।
श्रुतधारी आचार्य-आचार्य गुणधर, कुन्दकुन्द, पुष्पदन्त, भूतबलो, यतिवृषभ आदि ने प्रघमानुयोग, करणानुयोग, द्रव्यानुयोग, चरणानुयोग का केवलो और श्रुतकेवलियों की परम्परा के आधार पर ग्रन्थ रूप में आगम साहित्य निर्माण किया। श्रुत की यह परम्परा अर्थश्रुत और द्रव्यश्रुत के रूप में लगभग ई. पू. की शताब्दी से प्रारम्भ होकर चतुर्ध, पंचम शताब्दी तक चलती रही।
सारस्वत आचार्य-सारस्वताचार्यों ने श्रुत-परम्परा की मौलिक ग्रन्थ रचना और टीका साहित्य द्वारा प्रचार और प्रसार किया। इन आचार्यों में समन्तभद्र, पूज्यपाद, देवनन्दी, अकलंक, वीरसेन, जिनसेन, विद्यानन्दि आदि आचार्य माने जाते हैं।
प्रबुद्धाचार्य-जो कल्पना की रमणीयता से श्रुतवाणी (वीरवाणी) को गद्य और पद्य में अलंकृत शैली में काव्य-सृजन करते हैं। इस प्रकार के आचार्यों में जिनसेन प्रथम, सोमदेव, प्रभाचन्द्र, आर्यनन्दि, हरिषेण, पद्यनन्दि, महासेन आदि की गणना की जाती है। ___कवि और लेखक-श्रुत-संरक्षण और इसका विस्तार आचार्यों के अतिरिक्त गृहस्थ लेखक और कवियों ने किया । उन्होंने मौलिक रचनाओं के साथ टीका ग्रन्थ भी लिखे। आचार्य जिनसेन की परम्परा का विकास प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश तथा तत्कालीन भाषाओं में रचित वाङ्मय के आधार पर किया। प्रबुद्ध आचाचों ने जिन पौराणिक महाकाव्यों के रचना-तन्त्र का प्रारम्भ किया था, उस रचना-लन्त्र का सम्यक् विकास संस्कृत, अपभ्रंश, हिन्दी, गुजराती, मराठी, कन्नड़, तमिल, तेलुगु आदि भाषाओं में कवियों और लेखकों ने चरित एवं सिद्धान्त विपयक रचनाएँ लिखकर श्रुत-परम्परा का विकास किया है।
निष्कर्ष
भगवान महावीर के सिद्धान्तों और वाङ्मय का अवधारण एवं संरक्षण उनके उत्तरवर्ती श्रमणों और उपासक आचार्यों ने किया है। श्रुतधारी आचार्यों से अभिप्राय है जिन्होंने सिद्धान्त साहित्य, कम साहित्य, अध्यात्म साहित्य का ग्रन्धन किया है और जो चुगसंस्थापक एवं युगान्तकारी हैं। आद्य आचार्य 'गुणधर' हैं और उनका ग्रन्थ 'कसायपाड' हैं। धरसेनाचार्य के शिष्य पुष्पदन्त एवं भूतबली का 'षडाखण्डागम' ग्रन्थ है। सारस्वताचार्य से तात्पर्य हैं जिन्होंने प्राप्त हुई श्रुत परम्परा का मौलिक ग्रन्थ-प्रणयन और टीका-साहित्य द्वारा प्रचार एवं प्रसार किया है। इसके प्रथम आचार्य हैं-स्वामी समन्तभद्र । प्रवद्धाचार्य से अभिप्राय है जिन्होंने अपनी प्रतिभा द्वारा ग्रन्थ-प्रणयन के साथ विवृत्तियों और भाष्य भी रचे हैं । परम्परापोषक आचार्य चे हैं जिन्होंने दिगम्बर परम्परा की रक्षा के तिए प्राचीन आचार्यों साग निर्मित ग्रन्थों के आधार पर अपने नये 30 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चिायत भगवान महावीर