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જેને આગમધર ઓર પ્રાકૃત વાલ્મય
[४७ इस प्रकीर्णकमें ऐसी बहुत-सी बातें हैं जो श्वेताम्बरोंको स्वप्नमें भी मान्य नहीं हैं और अनुभवसे देखा जाय तो उसमें आगमोंके नष्ट होनेका जो क्रम दिया है वह संगत भी नहीं है.
____ अंगविज्जापइण्णय एक फलादेशका ९००० श्लोक परिमित महत्त्वका ग्रंथ है. इसमें ग्रहनक्षत्रादि या रेखादि लक्षणोंके आधार पर फलादेशका विचार नहीं किया गया है, किन्तु मानवकी अनेकविध चेष्टाओं एवं क्रियाओंके आधार पर फलादेश दिया गया है. एक तरह माना जाय तो मानसशास्त्र एवं अंगशास्त्रको लक्ष्यमें रखकर इस ग्रंथकी रचना की गई है. भारतीय वाङ्मयमें इस विषयका ऐसा एवं इतना महाकाय ग्रंथ दूसरा कोई भी उपलब्ध नहीं हुआ है. आगमोंकी व्याख्या
ऊपर जिन जैन मूल आगमसूत्रोंका संक्षेपमें परिचय दिया गया है उनके ऊपर प्राकृत भाषामें अनेक प्रकारकी व्याख्याएँ लिखी गई हैं. इनके नाम क्रमश:--नियुक्ति, संग्रहणी, भाष्य, महाभाष्य; ये गाथाबद्ध-पधबद्ध व्याख्याग्रंथ हैं. और चूर्णि, विशेषचूर्णि एवं प्राचीन वृत्तियाँ गयबद्ध व्याख्या
ग्रंथ हैं.
नियुक्तियाँ-स्थविर आर्य भद्रबाहु स्वामीने दस आगमों पर नियुक्तियां रची हैं, जिनके नाम इन्होंने आवश्यकनियुक्तिमें इस प्रकार लिखे हैं
आषस्सयस्स १ दसकालियस्स २ तह उत्तरज्झ ३ मायारे । सूयगडे णिज्जुत्ति ५ वोच्छामि तहा दसाणं च ६॥ कप्पस्स य णिज्जत्ति, पवहारस्सेव परमनिउणस्स ८
सरियपण्णत्तीए ९ वोच्छं इसिभासियाणं व १०॥ इन गाथाओंमें सूचित किया है तदनुसार इन्होंने दस आगमोंकी नियुक्तियाँ रची थीं. आगमोंकी अस्तव्यस्त दशा, अनुयोगकी पृथक्ता आदि कारणोंसे इन नियुक्तियोंका मूल स्वरूप कायम न रहकर आज इनमें काफी परिवर्तन और हानि-वृद्धि हो चुके हैं. इन परिवर्तित एवं परिवर्द्धित नियुक्तियोंका मौलिक परिमाण क्या था ? यह समझना आज कठिन है. खास करके जिन पर भाष्यमहाभाष्य रचे गये उनका मिश्रण तो ऐसा हो गया है कि स्वयं आचार्य श्री मलयगिरिको बृहत्कल्पकी वृत्ति (पत्र १)में यह कहना पड़ा कि-- सूत्रस्पर्शिकनियुक्तिर्भाष्यं चैको ग्रंथो जातः' और उन्होंने अपनी वृत्तिमें नियुक्ति-भाष्यको कहीं भी पृथक् करनेका प्रयत्न नहीं किया है.
सूर्यप्रज्ञप्ति और ऋषिभाषितसूत्रकी नियुक्तियाँ उपलब्ध नहीं हैं. उत्तराध्यन, आचारांग, सूत्रकृतांग, दशा इन आगमोकी नियुक्तियोका परिमाण स्पष्टरूपसे मालूम हो जाता है. आवश्यक, दशकालिक आदिकी नियुक्तियोंका परिमाण भाष्यगाथाओंका मिश्रण हो जानेसे निश्चित करना कठिन जरूर है, तथापि परिश्रम करनेसे इसका निश्चय हो सकता है किन्तु कल्प व व्यवहारसूत्रकी
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