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રામાયણકા અધ્યયને
[१०४ अनेक ग्रंथ जैन-साहित्यमें पाए जाते हैं । किंतु वे सभी प्रायः अर्वाचीन हैं और उपरि निर्दिष्ट ग्रंथोकी प्रायः इनमें छाया ही है।
यहाँ पर जिन ग्रंथोंका निर्देश किया गया है, वह जैन श्वेताम्बर-साहित्यको लक्षमें रख कर किया गया है। दिगंबर जैन-कथासाहित्यमें भी पद्मपुराण, तेवठिगुणालंकारचरिय आदि अनेकानेक ग्रंथरत्न संस्कृत, अपभ्रंश आदि भाषाओं में बड़ी प्रौढ़ शैलीसे निर्मित पाए जाते हैं।
गुजराती व हिंदी भाषामें भी रामायणको लक्षित करके दिगंबर-श्वेतांबराचार्य निर्मित अनेक रचनाएँ हुई हैं।
[ 'राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त अभिनन्दनग्रंथ,' कलकत्ता, ई. स. १९५९ ]
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