Book Title: Gyananjali Punyavijayji Abhivadan Granth
Author(s): Ramnikvijay Gani
Publisher: Sagar Gaccha Jain Upashray Vadodara

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Page 448
________________ નન્દીસૂત્રકે વૃત્તિકાર તથા પિનકાર [ 3 शतक विवरण नामकम्, अन्यदप्यनुयोगद्वारवृत्तिसंज्ञितम्, ततोऽपरमध्युपदेशमा लासूत्राभिधानम्, अपरं तु तद्वृत्तिनामकम्, अन्यच्च जीवसमासविवरणनामधेयम्, अन्यत्तु भवभावनासूत्रसंज्ञितम्, अपरं तु तद्विवरणनामकम्, अन्यच्च झटिति विरचय्य तस्याः सद्भावनामञ्जूषाया अङ्गभूतं निवेशितं नन्दिनिकनामधेयं नूतनं दृढफलकम् । एतैश्च नूतनफल कैर्निवेशितैर्वज्रमयीव सञ्जाताऽसौ मञ्जूषा तेषां पापानामगम्या । ततस्तैरतीव च्छलघातितया सञ्चूर्णयितुमारब्धं तद्द्द्वारकपाटसम्पुटम् । ततो मया ससम्भ्रमेण निपुणं तत्प्रतिविधानोपायं चिन्तयित्वा विरचयितुमारब्धं तद्द्द्वारपिधानहेतोः विशेषावश्यकविवरणाभिधानं वज्रमयमिव नूतनकपाटसम्पुटम् । ततश्चाभयकुमारगणि धन देवगणि-जिनभद्रगणिलक्ष्मणगणि-विबुधचन्द्रादिमुनिवृन्द-श्रीमहानन्द - श्रीमहत्तरावीरमतीगणिन्यादिसाहाय्याद् ' रे रे निश्चितमिदानीं हता वयं यद्येतद् निष्पद्यते, ततो धावत धावत, गृह्णीत गृह्णीत, लगत लगत' इत्यादि पूत्कुर्वतां सर्वात्मशक्त्या युगपत् प्रहरतां हाहारवं कुर्वतां च मोहादिचरटानां चिरात् कथं कथमपि विरचय्य तद्द्वारे निवेशितमेतदिति । ततः शिरो हृदयं च हस्ताभ्यां कुट्टयन् विषण्णो मोहमहाचरटः, समस्तमपि विलक्षीभूतं तत्सैन्यम्, निलीनं च सनायकमेव । ततः क्षेमेण शिवरत्नद्वीपं प्रति गन्तुं प्रवृत्तं तद् यानपात्रमिति ॥ - मलधारीय श्रीहेमचन्द्रसूरिकृत विशेषावश्यकवृत्तिप्रान्ते । इस उल्लेख को पढने से प्रतीत होता है कि आपने आवश्यकहारिभद्रीवृत्तिटिप्पनककी तरह नन्दिहारिभद्रीवृत्तिटिप्पनककी भी रचना की थी । यद्यपि श्री हेमचन्द्राचार्य महाराज इस टिप्पनकरचनाका उल्लेख आप करते ही हैं, फिर भी आश्चर्यकी बात यह है कि - इनके ही शिष्य श्री श्रीचन्द्रसूरि महाराजने प्राकृत मुनिसुव्रतस्वामिचरित्र की प्रशस्तिमें अपने दादागुरु और गुरुके, संक्षिप्त होते हुए भी, महत्त्वके चरित्रका वर्णन करते हुए श्री हेमचन्द्राचार्यको ग्रन्थकृतियों का उल्लेख किया है, उसमें सभी कृतियोंके नाम दृष्टिगोचर होते हैं, सिर्फ इस नन्दिटिप्पनकका नाम उसमें नहीं पाया जाता है । वह उल्लेख इस प्रकार है जे तेण स रइया गंथा ते संपइ कहेमि | सुत्तमुवएसमाला भवभावणपगरणाण काऊण | गंथसहस्सा चउदस तेरस वित्ती कया जेण ॥ अणुओगदाराणं जीवसमासस्स तह य सयगस्स । जेणं छ सत्त चउरो गंथसहस्सा कया वित्ती ॥ मूलावस्यवित्तीए उवरि रइयं च टिप्पणं जेणं । पंचसहस्सपमाणं विसमद्वाणावबोहयरं ॥ जेण विसावस्यसुत्तस्सुवरिं सवित्रा वित्ती । रइया परिफुडत्था अडवीससहस्स परिमाणा ॥ - मुनिसुव्रतस्वामिचरित्र प्रशस्ति । इस उल्लेखमें श्री श्रीचन्द्रसूरिने अपने गुरुकी सब कृतियोंके नाम दिये हैं। सिर्फ नन्दिटिप्पनकका नाम इसमें नहीं है, जिसका नामोल्लेख खुद मलधारी श्री हेमचन्द्राचार्य महाराजने विशेषावश्यकवृत्तिके प्रान्तभागमें किया है । यद्यपि मुनिसुव्रतस्वामिचरित के इस उल्लेखको प्राचीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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