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જૈન આગમધર ઔર પ્રાકૃત વાડ્મય
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कि अपनी प्राचीन धर्मकथाओं में धार्मिक सामग्रीके अतिरिक्त लोकव्यवहारको स्पर्श करनेवाले अनेक विषय प्राप्त होते हैं. उदाहरण के तौर पर कथा - साहित्य में राजनीति, रत्नपरीक्षा, अंगलक्षण, स्वप्नशास्त्र, मृत्युज्ञान आदि अनेक विषय आते हैं. पुत्र-पुत्रियोंको पठन, विवाह, अधिकारप्रदान, परदेशगमन आदि अनेक प्रसंगों पर शिक्षा, राजकुमारों को युद्धगमन, राज्यपदारोहण आदि प्रसंगों परहित शिक्षा, पुत्र-पुत्रियोंके जन्मोत्सव, झुलाने, विवाह आदि करने का वर्णन, ऋतुवर्णन, वनविहार, अनंगलेख धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, अलंकारशास्त्र, साहित्यचर्चा आदि विविध प्रसंग; साहूकारोंका वाणिज्य व्यापार, उनकी पद्धति, उनके नियम, भूमि व समुद्र में वाणिज्य के लिए जाना, भूमि व समुद्र के वाहन, व जहाजके प्रकार, तद्विषयक विविध सामग्री, जीवन के सद्गुण-दुर्गुण, नीति- अनीति, सदाचार दुराचार आदिका वर्णन इत्यादि सैकड़ों विषयोंका इस साहित्य में वर्णन है. ये सभी सांस्कृतिक साधन है.
वसुदेवडी प्रथम खंड ( पत्र १४५ ) में चारुदत्तके चरितमें चारुदत्तकी स्थल संबंधी व सामुद्रिक व्यापारिक यात्राका अतिरसिक वर्णन है जिसमें देश-विदेशों का परिभ्रमण; सूत्रकृतांग की मार्गाध्ययन-निर्युक्ति में ( गा० १०२ ) वर्णित शंकुपथ, अजपथ, लतामार्ग आदिका निर्देश किया गया है. इसमें यात्रा के साधनोंका भी निर्देश है. परलोकसिद्धि, प्रकृति- बिचार, वनस्पति में जीवत्व की सिद्धि, मांसभक्षण के दोष आदि अनेक दार्शनिक धार्मिक विषय भी पाये जाने हैं. इसी वसुदेवहिंड के साथ जुड़ी हुई धम्मिल्लडिंडीमें " अत्थसत्ये य भणियं - 'विसेसेण मायाए सत्येण य हंतवो अप्पणो विवड्ढमाणो सत्तु' त्ति" ( पृ० ४५ ) ऐसा उल्लेख आता है जो बहुत महत्त्वका है. इससे सूचित होता है कि प्राचीन युगमें अपने यहां प्राकृत भाषामें रचित अर्थशास्त्र था. श्री द्रोणाचार्य ने ओघनियुक्ति में " चाणकए वि भणियं ( पत्र १५२-२ ) ऐसा उल्लेख किया है. यह भी प्राकृत अर्थशास्त्र होनेकी साक्षी देता है, जो आज प्राप्त नहीं है. इसी ग्रंथमें पाकशास्त्रका उल्लेख भी है जिसका नाम पोरागमसत्य दिया है.
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'जइ काइयं न वोसिरइ तो अदोसो' त्ति"
आजके युगमें प्रसिद्ध प्रिन्स ऑफ वेल्स, किन मेरी, ट्युटानिया आदि जहाजों के समान युद्ध, विनोद, भोग आदि सब प्रकारकी सामग्रीसे संपन्न राजभोग्य एवं धनाढ्योंके योग्य समृद्ध जहाजों का वर्णन प्राकृत श्रीपालचरित आदिमें मिलता है. रत्नप्रभसूरिविरचित नेमिनाथचरितमें अलंकारशास्त्रको विस्तृत चर्चा आती है. प्रहेलिकाएं, प्रश्नोत्तर, चित्रकाव्य आदिका वर्णन तो अनेक कथाग्रंथों में पाया जाता है. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रकी अर्थदीपिका वृत्ति में ( पृ० १२७) मंत्री पुत्री - कथानकर्मे किसी वादीने मंत्रीपुत्रीको ५६ प्रश्नोका उत्तर प्राकृत भाषामें चार अक्षरों में देने का वादा किया है. मंत्री पुत्रीने भी 'परवाया' इन चार अक्षरोंमें उत्तर दिया है. ऐसी क्लिष्टातिक्लिष्ट पहेलियाँ भी इन कथाग्रंथों में पाई जाती हैं.
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