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अग्न्यस्त्र-अघोड़ी
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स्त्रीका पतिकी चिता में प्रवेश । - प्रस्तर - पु० चकमक पत्थर । - बाण - पु० वह वाण जिससे आगकी लपट निकले । - बीज - पु० सोना; 'र्' अक्षर -मंथ, - मंथन - पु० अरणीसे रगड़कर आग उत्पन्न करना; इस कार्य में प्रयुक्त मंत्र; गनियारीका पेड़ । - मणि- पु० सूर्यकात मणि; आतशी शीशा । -मांद्य-पु० जठराग्निका मंद हो जाना, हाजमेकी खराबी । - मानू ( मत्) - - मुख- पु० ब्राह्मण; देवता; प्रेत; अग्निहोत्री; चीतेका पेड़, भिलावाँ; एक अग्निवर्द्धक चूर्ण । -लिंग- पु० आग की लपट देखकर शुभाशुभ फल बतानेकी विद्या । - लोक- पु० एक लोक जिसके अधिकारी अग्निदेव माने गये हैं । - वंश - पु० अग्निकुल । - वधू- स्त्री० स्वाहा । - वर्द्धक, वर्द्धन - वि० पाचनशक्ति बढ़ानेवाला | - वर्षा - स्त्री० आगकी या तोपके गोलों, बर्मो आदिकी वर्षा । - विंदु - पु० चिनगारी - वारक- वि० ( फायर प्रूफ) अग्निका प्रभाव रोकनेवाला; वह जो आगके संपर्क में आनेपर भी न जले, सफलतापूर्वक उसके प्रभावका वारण कर सके । - शामक दल - पु० (फायर ब्रिगेड ) किसी मकान आदि में लगी हुई आग बुझानेका काम करनेके लिए संघटित प्रशिक्षित व्यक्तियों का दल । - शिखा - स्त्री० आगकी ज्वाला या लपट; कलियारी पौधा । -शुद्धि-स्त्री० आगमें तपाकर शुद्ध करना; अग्निपरीक्षा | - संस्कार - पु० आग जलाना; तप्त करना; अग्नि द्वारा शुद्धि करना; मृतक दाह; श्राद्ध में एक विधि। सखा, सहायपु० वायु; धुआँ; जंगली कबूतर - सेवन-पु० आग तापना । - होत्र - पु० वैदिक मंत्रोंसे अग्निमें आहुति देना । - होत्री (त्रिन्) - पु० अग्निहोत्र करनेवाला । अग्न्यस्त्र-पु० [सं०] मंत्र - प्रेरित बाण जिससे आग निकले; अग्नि चालित अस्त्र ( बंदूक, तमंचा आदि ) । अग्न्याधान - पु० [सं०] वेदमंत्र द्वारा अग्निकी स्थापना; अग्निहोत्र |
अग्य* - वि० दे० 'अज्ञ' ।
अग्या* - स्त्री० दे० 'आशा' |
अग्यारी - स्त्री० आगमें गुड़, दशांग आदि डालना; अग्यारी करनेका पात्र ।
अग्र - वि० [सं०] अगला; पहला; मुख्य; अधिक । अ०आगे । पु० अगला भाग, नोक; शिखर । - गण्य - वि० गणना में पहले आनेवाला, मुख्य । - गामी (मिन्)वि० आगे चलनेवाला । पु० नायक, अगुआ । -गामी दल - पु० ( फारवर्ड ब्लाक ) भारतका एक राजनीतिक दल जिसकी संस्थापना नेताजी सुभाषचंद्र वसुने की थी । - ज - वि० पहले जनमा हुआ; * श्रेष्ठ । पु० बड़ा भाई; ब्राह्मण; *अगुआ । - जन्मा (न्मन्) - पु० बड़ा भाई; ब्राह्मण । - जा - स्त्री० बड़ी बहन । -णी- वि० आगे चलनेवाला; श्रेष्ठ । पु० नेता; अगुआ; एक अग्नि । -तर - वि० (फरदर) और आगेका, कहे हुएके बादका । - दूत - पु० पहलेसे पहुँचकर किसीके आनेकी सूचना देनेवाला । - भाग - पु० श्रेष्ठ या अगला भाग; सिरा, नोकः श्राद्ध आदिमें पहले दी जानेवाली वस्तु । -लेखपु० समाचारपत्रका मुख्य ( संपादकीय ) लेख, ‘लीडिंग'
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आर्टिकिल' । -वर्ती (र्तिन् ) - वि० आगे रहनेवाला । - सर - वि०, पु० आगे जानेवाला, अग्रगामी, प्रधान, अगुआ । - सारण- पु० आगेकी तरफ बढ़ाना; किसीका आवेदन पत्रादि अपने से बड़े अधिकारीके पास स्वीकृति, आदेश आदि के लिए भेजना । -सारित - वि० (फारवर्डेड) ( आवेदन पत्रादि) जो आगे (ऊँचे अधिकारीके पास) भेज दिया गया हो, जो आगे बढ़ा दिया गया हो। -सोचीवि० [हिं०] आगेकी बात सोचनेवाला, दूरदर्शी । अग्रजाधिकार - पु० (प्राइमोजेनीचर) अपने पिताका राज्य, सम्पत्ति आदि वरासत में पानेका ज्येष्ठ पुत्रका अधिकार । अग्राशन-पु० [सं०] भोजनका वह अंश जो देवता, गौ आदिके लिए पहले निकाल दिया जाय । अग्रासन - पु० [सं०] सम्मानका आसन या स्थान । अग्राह्य- वि० [सं०] ग्रहणके अयोग्य; त्याज्य; अमान्य | - व्यक्ति - पु० ( परसोना नान्-ग्रेटा ) ( किसी देशका ) वह राजदूत, राजपुरुष या अन्य व्यक्ति जो (अन्य देशके) उच्चाधिकारियों आदिको अग्राह्य या अमान्य जान पड़े । अग्रिम - वि० [सं०] पहला, अगला; [हिं०] श्रेष्ठ, उत्तम; पेशगी; आगामी; सबसे बड़ा । - देय - पु० (इम्प्रेस्ट मनी) किसी कार्य - विशेषमें खर्च करने के लिए पहलेसे दिया गया धन, जिसका हिसाब बाद में किया जाय । धन- पु० ( reait) किसीके वेतन, कार्यके पारिश्रमिक, वस्तुके मूल्यादिका वह अंश जो उसे नियत तिथिसे पहले ही या वस्तु प्राप्त होनेके पूर्व ही दे दिया जाय ।
अग्रे मूल्य - पु० ( फारवर्ड प्राइस) आगे मिलने या लगाया जानेवाला मूल्य; बादमें बेची जानेवाली वस्तुका अभीसे लगाया जानेवाला मूल्य ।
अग्रेसर - वि०, पु० [सं०] आगे जानेवाला; अगुआ । अप्रेसरिक - पु० [सं०] नेता; मालिकके आगे जानेवाला नौकर ।
अघ - पु० [सं०] पाप; दुष्कर्म; दुःख; विपत्ति; अशौच । अघट - वि० [सं०] न होने योग्य, कठिन; *बेमेल, अयोग्य । वि० [ हि० ] जो घटे नहीं; जो एकसा बना रहे । अघटित - वि० [सं०] जो हुआ न हो; न होनेवाला, असंभव; अयोग्य, अनुचित; * अवश्यंभावी; * न घटनेवाला । - घटनापटीयसी - वि० (स्त्री०) जो कुछ नहीं हुआ हैं उसे करनेमें कुशल ( माया ) । अघट्ट* - वि० दे० 'अघट' | अघाउ * - पु० तृप्ति, संतोष अघात - पु० [सं०] घात या क्षतिका अभाव; * आघास, प्रहार, चोट । वि० पेटभर; ज्यादा, बहुत । अघाना - अ० क्रि० अफरना, तृप्त होना, छकना; किसी वस्तु के सेवन या उपभोगसे जी भरना; * प्रसन्न होना । अधारि - पु० [सं०] पापका नाश करनेवाला; अघ नामक दैत्य के मारनेवाले, कृष्ण ।
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अघासुर - पु० [सं०] कृष्णके समयका एक दैत्य ( यह पूतनाका छोटा भाई और कंसका सेनापति था ) । अघी (विन्) - वि० [सं०] पापी । अघेरना - पु० जौका मोटा आटा । अघोड़ी - वि० पु० 'अघोरी' ।
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