Book Title: Gyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 27
________________ (ख) ज्ञान लक्षण प्रत्यक्ष अथवा विशेषण स्मरण मूलक विशिष्ट प्रत्यक्ष एवं (ग) योगंज। (क) सामान्य लक्षणाजन्य (Class perception ) - किसी व्यक्ति या वस्तु विशेष को देखकर उसकी जाति का प्रत्यक्ष होना ही सामान्य लक्षणाजन्य अथवा सामान्य लक्षण प्रत्यक्ष है। न्यायदर्शन के मुताबिक व्यक्तिविशेष में उसकी जाति निहित है। इसलिए जब किसी व्यक्ति का प्रत्यक्ष होता है तो उसमें निहित जाति का भी प्रत्यक्ष हो जाता है । उदाहरण के लिए किसी मनुष्य विशेष को देखते ही उसकी जाति (मनुष्यत्व) का प्रत्यक्ष हो जाता है। इसी तरह किसी घड़े को देखकर जो भावी एवं अतीत दूरवर्ती एवं निकटवर्ती सभी घड़ों का समूहात्मक ज्ञान होता है, वह प्रत्यक्ष सामान्य लक्षण प्रत्यक्ष कहलाता है क्योंकि एक घड़े के साथ आँख जुटने पर जो घटत्व उस घड़े में देखा जाता है, वही संसार के समग्र घटों में रहता है। अतः घटत्व स्वरूप सामान्य का अर्थात् सकल घट साधारण धर्म का जब ज्ञान होता है तो वही ज्ञान असाधारण कारण बनकर स्वविषय घटकत्व के आश्रयीभूत समग्र घटों का प्रत्यक्ष करा देता है । Siminyalaka÷a perception is the perception of the universals. According to Nyiya, the universals are a distinct class of reals. They inhere in the particulars which belong to different classes on account of the different universals inhering inthem. An individual belongs to class because the universal of that class inheres in it. Thus a cow becomes a cow because it has the universal cowness inhering in it." 29 (ख) ज्ञान लक्षणाजन्य अथवा ज्ञान लक्षण प्रत्यक्ष (Complicative perception)- अगर एक इन्द्रिय के कार्य को दूसरी इन्द्रिय करने लगे तो ज्ञान लक्षण प्रत्यक्ष होता है। इसे यों कहा जाए कि ज्ञान लक्षणाजन्य अथवा ज्ञान लक्षण प्रत्यक्ष वह है, जहाँ कोई दूर से चन्दन काष्ठ ले जाता है तो दूरता-प्रयुक्त घ्राण के साथ सम्बन्ध न होने पर आँख से ही वहाँ "यह चन्दन सुगन्धित है " इस प्रकार से प्रत्यक्ष होता है । वहाँ सुगन्ध का स्मरण ही सुगन्ध विशिष्ट चन्दन के प्रत्यक्ष में कारण अर्थात् असाधारण कारण हो जाता है। आँख का कार्य है देखना और नाक का कार्य है गन्ध का पता लगाना । यहाँ पूर्वानुभूति के आधार पर हम आँखों से देखकर ही किसी वस्तु के सुगन्धित अथवा दुर्गन्धित होने का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। इसी प्रकार जब हम आँखों से देखते ही हरी घास को मुलायम और बर्फ को ठंडा बतला देते हैं । यहाँ घास के मुलायम और बर्फ के ठंडा होने का ज्ञान आँखों के द्वारा ही हो जाता है। वस्तुतः यह त्वचा का काम था । किन्तु पूर्वानुभूति के आधार पर हम आँखों से देखकर ही किसी वस्तु के मुलायम या कठोर, ठंडा होने का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं तो यही ज्ञान ज्ञान लक्षण प्रत्यक्ष कहलाता है। साधारणतः प्रत्येक इन्द्रिय का अपना अलग-अलग विषय होता है। अतः जब एक इन्द्रिय से दूसरी इन्द्रिय के विषय का ज्ञान होने 27

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