Book Title: Gyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 137
________________ जबकि उदाहरण की सभी अवस्थाएं भिन्न होती हैं और वे उदाहरण केवल एक अवस्था में समान होते हैं और समान अवस्था में परिभाषा में अन्तर होता है। तब हम उस अवस्था को सहगामी विचरणा विधि को अन्वय विधि का विशेष रूप मानते हैं, जैसा कि पहले उदाहरण में दिया गया है। लेकिन जब दो उदाहरणों में एक अवस्था को छोड़कर अन्य अवस्था में समानता होती है तो यहां निरक्षरता ही प्रधान होता है। कहने का तात्पर्य है कि जब केवल एक ही अवस्था में भिन्नता होती है तो उस सहगामी विचरणा विधि को हम व्यतिरेक विधि का विशेष रूप मानते हैं। जैसा कि दूसरे उदाहरण में दिया गया है। सहगामी विचरणा विधि को हम एक उदाहरण द्वारा इस प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं। मान लें कि हम एक बर्तन, जिसमें बहुत कम हवा है। बरतन में घंटी बजाने पर घंटी की आवाज बहुत कम सुनाई पड़ती है लेकिन जब हम उस बरतन में हवा की मात्रा अधिक कर देते हैं और तब घंटी बजाते हैं तो हम पाते हैं कि घंटीकी आवाज तेज सुनाई पड़ती है। इसी प्रकार जब गरीबी धीरे-धीरे बढ़े और उसके साथ-साथ चोरी, डकैती भी धीरे-धीरे बढ़े तो हम चोरी, डकैती बढ़ना गरीबी का कारण कहेंगे। इस तरह पुलिस की निगरानी धीरे-धीरे अधिक करने से चोरी डकैती भी उसी अनुपात में कम हो जाये तो हम कहेंगे कि पुलिस की निगरानी ही चोरी डकैती नहीं होने का कारण है। इस तरह हम पाते हैं कि इस विधि में कारण और कार्य बराबर होता है। चूंकि कारण जब घटता है और बढ़ता है तो कार्य में भी उसी अनुपात में घटना या बढ़ना होता है। जब घटना बढ़ना होता है, जब घटना के परिमाण से बढ़ना या घटने से कोई दूसरी घटनाओं में कोई परिवर्तन न हो तो हम उसका कारण नहीं मान सकते हैं। कहने का तात्पर्य है कि जब एक साथ घटनाएं बिल्कुल एक-सी रहती हैं तो उसे हम व्यतिरेक विधि का रूपान्तरण कहते हैं। लेकिन जब साथ ही घटनाएं भिन्न हो जाती हैं तो उसे हम अन्वय विधि का रूपान्तरण कहते हैं। गुण-अब जहां तक सहगामी विचरणा विधि के गुणों का प्रश्न है, वे निम्नलिखित हैं (i) जब कभी हमारे सामने ऐसी समस्याएँ आ जाती हैं, जिसका कारण व्यतिरेक विधि के द्वारा नहीं निकाल पाते हैं तो वैसी अवस्था में उस समस्या का कारण निकालने के लिए सहगामी विचरणा विधि की सहायता लेते हैं, जैसे-हवा से, ताप से, शक्ति से, अणु से इत्यादि ऐसे पदार्थ हैं, जिनका बिल्कुल अभाव होना सम्भव नहीं है। (ii) कार्य-कारण सम्बन्ध का पता इस विधि में हमें तब लगता है जब कारण और कार्य का रूप असाधारण रहता है, जैसे-यदि कोई मनुष्य भोज में 137

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