Book Title: Gyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 152
________________ नहीं थी । विचारों की अराजकता के बीच धर्म एवं अनुशासन के बल पर जीवन चक्र प्रवर्तित करने का श्रेय सर्वप्रथम मनु को है। न्याय के मामलों में ऐसे व्यक्तियों से परामर्श नहीं किया जाना चाहिए, जिनको स्थानीय रीति-रिवाजों का ज्ञान न हो। शुक्र के अनुसार नीतिशास्त्र सामाजिक सावयव का खाद्य पदार्थ है, उसकी शिक्षाएँ मानव समाज में रक्त संचार करती हैं तथा मानव समाज के विकास में सहयोग देती है जिस तरह भोजन भौतिक जीवन की प्रारंभिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, उसी तरह नीतिशास्त्र सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है । इनके अनुसार राज्य के सात अंग हैं- प्रभु (राजा) मन्त्री साथी कोष, क्षेत्र, दुर्ग तथा सेना । शुक्राचार्य ने इन अंगों की तुलना मानव शरीर के अंगों से की है। औशनस सम्प्रदाय ने दण्डनीति को ही एकमात्र अस्तित्ववान बतलाया है। किन्तु कौटिल्य ने धर्म-अर्थ के यथार्थ स्वरूप की शिक्षा अथवा ज्ञान प्राप्त करवाने के लिए आन्वीक्षिकी, त्रयी वार्ता और दण्डनीति- इन चार प्रकार की विद्याओं को अनिवार्य तथा उपयोगी माना है । ज्ञान के अनुरूप मनु ने दण्ड का विधान करते हुए बतलाया है कि चोरी के गुण तथा दोष को जानने वाले शूद्र के चोरी करने पर चोरी के विषय से आठ गुना दण्ड मिलना चाहिए। इसी तरह वैश्य को सोलह गुना, क्षत्रिय को बत्तीस गुना एवं ब्राह्मण को चौसठ गुना दण्ड देना चाहिए क्योंकि वह उसी चोरी के गुण और दोष को जानता है । भारतीय सामाजिक संस्थाएं जो अत्यन्त प्राचीन काल में थीं, वे आज भी हैं, उनके आधार - तत्त्व में किसी प्रकार का मूलभूत परिवर्तन नहीं आया है, उनकी अक्षुण्णता पूर्ववत बनी हुई है। यद्यपि इस बीच समय - समय पर अनेकानेक विदेशियों के अभियान हुए, जिन्होंने देश को बार-बार पदाक्रान्त और अशान्त किया तथा अपनी शक्ति और क्रूरता के बल पर स्थानीय संगठनों को तोड़ने का सबल प्रयास भी किया है। इनमें पारसी, यूनानी यूनानी-बाख्ती, शक, पहन्व, कुषाण, हूण और मुसलमान जैसी विदेशी जातियां मुख्य हैं। इन्होंने इसकी मूल संस्कृति एवं इसकी विरासत को मिटाने की चेष्टा की है किन्तु भारतवासियों ने दृढ़तापूर्वक उसका सामना किया तथा अपना स्थायित्व बनाए रखा है। वेद तो ज्ञान स्वरूप ही है। उससे ब्राह्मण ग्रन्थ एवं उपनिषद् का आगमन हुआ। फिर वेदांग की रचना वेदों के अर्थ और विषय को समझने के लिए की गई थी। कुछ विचारकों के अनुसार ब्राह्मण ग्रन्थ और उपनिषद् ही इसके लिए पर्याप्त हैं किन्तु कुछ का कहना है कि वेद के अर्थ और विषय की विस्तृत जानकारी के लिए वेदांग अत्यन्त आवश्यक सामग्रियों को उपलब्ध कराता रहा है। वेदांग कीसंख्या छः बतलाई जाती हैं- शिक्षा, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष और कल्प (सूत्र साहित्य) । 152

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