Book Title: Gyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 164
________________ न्यायशास्त्र उन साधनों व उपायों का ही केवल अनुसंधान नहीं करता, जिनके द्वारा मानव मस्तिष्क ज्ञान को आत्मसात और विकसित करता है। यह तार्किक तथ्यों की भी व्याख्या करता है तथा उन्हें तार्किक सूत्रों में प्रकट करता है, जो सत्य के अन्वेषण में विविध सिद्धान्तों की स्थापना करते हैं। इस तरह प्रमाण विज्ञान के साथ अथवा मानदण्ड निर्मित हो जाते हैं और उनसे हम अपने अन्दर पूर्व से उपस्थित ज्ञान की जांच कर सकते हैं। अब स्पष्ट है कि गौतम एवं उनके अनुयायियों के द्वारा प्रदत्त तर्कशास्त्र प्रमाण का विज्ञान है अर्थात साक्षी का मूल्य निर्धारण करता है। लौकिक प्रत्यक्ष और अलौकिक प्रत्यक्ष एवं अलौकिक प्रत्यक्ष के तीन भेद हैं-सामान्य लक्षण, ज्ञान लक्षण और योगज। अन्तिम भेद अन्तिम यौगिक अन्तर्दृष्टि है। यह भारत की अमूल्य निधि है और यह निधि बिहार के सपूतों के द्वारा निर्मित किया गया है। इसलिए भारत के विकास एवं गौरव में बिहार की अहम भूमिका स्वतः सिद्ध हो जाता है। प्राचीन न्याय से नव न्याय के प्रणेता बिहार के हैं। कुछ बिहार के प्रभाव के कारण ही बंगाली भी नव नैयायिक बने। गौतम, उदयनाचार्य, कृष्ण मिश्र, श्री गंगेश उपाध्याय, डॉ. उमेश मिश्र, डॉ. अमरनाथ झा, डॉ. हरिमोहन झा, रघुनाथ शिरोमणि आदि का नाम नित्य स्मरणीय है। गदाधर को कुछ लोग बंगाली मानते हैं। जो भी हो किन्तु यह निर्विवाद ही है कि इनको ऊँचाई तक ले जाने वाला बिहार ही है। गदाधर को भारतीय तार्किकों का सम्राट कहा गया है। मीमांसा दर्शन के क्षेत्र में मण्डन मिश्र का नाम उल्लेखनीय है। यद्यपि आदिशंकराचार्य से इनकी हार हो गई तथापि शंकर को भी उनकी पत्नी भारती के समक्ष कुछ समय तक स्तब्ध रह जाना पड़ा। यह सही है कि दोनों अन्त में शंकर का शिष्यत्व ग्रहण कर लिया किन्तु शंकर दिग्विजय का अन्तिम पड़ाव मण्डन मिश्र ही ठहरे। इनकी पैठ ज्ञान मीमांसा. तत्त्व मीमांसा और आचार मीमांसा पर समान रूप से दृष्टिगत होता है। ये और वाचस्पति मिश्र दोनों पूर्वमीमांसा और उत्तर मीमांसा के प्रकाण्ड पण्डित निकले। इन्होंने शंकर के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाया है। अतः हम कह सकते हैं कि बिहार ही भारत को उच्च शिखर पर पहुंचाया है और पहुंचायेगा। कौटिल्य का नीति दर्शन और अर्थशास्त्र अभी भी दुनियां के लिए प्रेरणादायक हैं। साहित्य के क्षेत्र में विद्यापति का नाम आज भी श्रद्धापूर्वक लेते नजर आते हैं। इनका संगीत बिहार में ही नहीं अन्यत्र भी अभी तक लोग गाते आ रहे हैं और आगे भी गाने की उम्मीदें हैं। इनकी लोकप्रियता के कारण बंगाली बन्धु इन्हें बंगाली कवि भी कहने लगे हैं। 164

Loading...

Page Navigation
1 ... 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173