Book Title: Gyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 136
________________ के परिमाण कार्य का संघटना किसी घटना के परिमाण में परिवर्तन होने से यदि किसी दूसरी घटना के परिमाण में भी किसी प्रकार का परिवर्तन हो तो उन सभी परिवर्तित घटनाओं में कारण-कार्य का सम्बन्ध होगा। जब अमुक घटनाओं में कोई परिवर्तन होता है और फिर यदि दूसरी घटना में उसी तरह का परिवर्तन होता है, तब पहली घटना (जिसमें परिवर्तन हुआ था), दूसरी घटना (जिसमें ही बाद में परिवर्तन होता है) का कारण या कार्य है या दोनों के बीच कारणता का सम्बन्ध है। यदि हम ऊपर की बातों का विश्लेषण करें तो इसमें निम्नलिखित बातें पायेंगे (i) दो या दो से अधिक उदाहरणों को निरीक्षण करना। (ii) उन उदाहरणों में किसी एक अवस्था में परिवर्तन देखना तथा फिर दूसरी अवस्थाओं को देखना। (iii) यह अवस्थाओं का परिवर्तन एक दिशा में भी हो सकता है और विपरीत दिशा में भी। (iv) घटना या बढ़ना एक ही परिणाम में होगा। (v) इससे परिवर्तित होने वाली अवस्थाओं के बीच कार्य-कारण सम्बन्ध का होना। अर्थात् इस विधि में जिस घटना की जांच होती है, उसके कुछ घअने या बढ़ने वाले उदाहरण लिये जाते हैं। उस घटना के घटने या बढ़ने के साथ जब किसी नियम से कोई दूसरी घटना घटती या बढ़ती है तो वही उसका कारण सिद्ध होती है। इसे एक सांकेतिक उदाहरण द्वारा इस प्रकार स्पष्ट कर सकते हैंपूर्ववर्ती अनुवर्ती A BC a b c A BC a'bc ABC a b c पूर्ववर्ती अनुवर्ती ABC abc A' KF a'h v AYR a’lk ऊपर के उदाहरण में हम देखते हैं कि जब-जब A आता है तब-तब a आता है, फिर जब A बढ़ता है तो भी बढ़ता है। जब A घटता है तो भी घटता है। इससे जाहिर होता है कि A और a में कार्यकारण सम्बन्ध है। ऊपर के दोनों उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि सहगामीविचरणा विधि अन्वय विधि और व्यतिरेक विधि का एक विशेष रूप है। आता है। विधि अ-ऊपर के दोनों होता है कि A और बढ़ता है। जब 136

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