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बुद्धिवाद शब्द का प्रयोग साधारणतः एक ऐसे व्यापक अर्थ में किया जाता है. जो जीवन और जगत को समझाने एवं उसकी व्याख्या करने में मनुष्य की बुद्धि को सर्वोपरि महत्त्व देता है। मानवीय संस्कृति के इतिहास में यह दृष्टिकोण समय-समय पर व्यक्त होता रहा है। प्राचीन भारत में चार्वाक और उसके अनुचरों की आस्था इसी तरह के दर्शन में थी। प्राचीन ग्रीक और रोम में बहुत सारे दार्शनिक बुद्धिवादी रहे हैं। पाश्चात्य दर्शन में 'बुद्धिवाद' शब्द एक विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त होता रहा है। इस मत के अनुसार बुद्धि रहस्य की खोज कर सकने में स्वतः ही समर्थ है। यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति बुद्धि से ही होती है। केवल इन्द्रिय प्रत्यक्ष से संगत और सार्विक या यथार्थ ज्ञान उपलब्ध नहीं हो सकता है।
उपर्युक्त विवेचनों से जाहिर हो जाता है कि बुद्धिवाद एक ऐसा ज्ञान शास्त्रीय सिद्धान्त है जिसके अनुसार वास्तविक और सत्य ज्ञान की प्राप्ति बुद्धि के द्वारा ही संभव हो सकती है, किसी दूसरे साधन से नहीं। इस सिद्धान्त के मुताबिक यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति का एकमात्र साधन बुद्धि है। इस सन्दर्भ में दो प्रश्न सहज ही उठ जाते हैं कि-1. यथार्थ ज्ञान क्या है और बुद्धि का स्वरूप क्या है?
बुद्धिवादियों के अनुसार यथार्थ ज्ञान वह है, जो सार्वभौम तथा अनिवार्य हो। सार्वभौमिक होने का अर्थ है जो सभी देश, काल एवं परिस्थिति की वस्तुओं पर लागू हो। अनिवार्य होने का अर्थ है जिसमें अपवाद न हो।
इसकी सामान्य विशेषताएँ
1. इस सिद्धान्त के मुताबिक बुद्धि ज्ञानप्राप्ति का एकमात्र साधन है। अनुभव यानी इन्द्रियों के द्वारा यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती है।
2. यह जन्मजात प्रत्ययों (Intuitive ideas) की सत्ता को स्वीकार करता है। जन्मजात प्रत्यय को सहज प्रत्यय भी कहा जाता है। यह प्रत्यय मनुष्य के मस्तिष्क में जन्म से ही विद्यमान रहता है। इन्हें इन्द्रियों से नहीं जाना जा सकता है। इसे सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है, चूंकि स्वयंसिद्ध है। सभी ज्ञान इन्हीं प्रत्ययों में अव्यक्त रूप में विद्यमान रहते हैं। बुद्धिवादियों के अनुसार इन्हीं सहज प्रत्ययों को विकसित करके बुद्धि हमें यथार्थ ज्ञान देती है। इसीलिए बुद्धिवाद सहज ज्ञानवाद अथवा अनभव निरपेक्षवाद भी कहलाता है।
3. इस सिद्धान्त के मुताबिक मानव मस्तिष्क सदैव सक्रिय रहता है। यह विचार जॉन लॉक के मत से सर्वथा भिन्न है। लॉक के मुताबिक मस्तिष्क हमेशा निष्क्रिय रहता है। बुद्धिवाद के अनुसार मस्तिष्क निष्क्रिय नहीं बल्कि सक्रिय होकर सहज प्रत्ययों को व्यवस्थित करके हमें वास्तविक ज्ञान दिलाने में समर्थ होता है।
4. जैसा कि पहले बतलाया जा चुका है कि इस सिद्धान्त के मुताबिक यथार्थ ज्ञान वह ज्ञान है, जो सार्वभौम एवं अनिवार्य हो। बुद्धिवादियों का कहना है कि यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति मात्र बुद्धि के द्वारा ही संभव हो सकती है।
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