Book Title: Gyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 100
________________ सत्यता और असत्यता के चार प्रमुख सिद्धान्त हैं। वे हैं-अन्तर्नुभूतिवादी सिद्धान्त अथवा अन्तःप्रतिभावादी सिद्धान्त, सामंजस्य सिद्धान्त, संवादिता सिद्धान्त और व्यावहारिकतावादी सिद्धान्त। एस.सी. चटर्जी के शब्दों में, "There are four main theories of truth and error which bear on these two questions. These are known as the intuitionist, the coherence, the pragmatist, and the correspondence theory of truth and error." सत्यता और असत्यता की समस्या खासकर व्यावहारिकतावादियों के लिए Central Problem माना जाता है। सी.ई.एम. जोड ने ठीक ही लिखा The problem of truth and error is the central problem of pragmatism." अतः व्यावहारिकतावादियों के लिए यह सबसे महत्त्वपूर्ण समस्या है। चूंकि इन्होंने ज्ञान और जीवन में अटूट सम्बन्ध को स्वीकार किया है। जो ज्ञान व्यावहारिक जीवन में उपयोगी या लाभप्रद हो, वही सत्य है। इसी प्रकार जिस ज्ञान की जीवन में कोई उपयोगिता नहीं है, वह असत्य करार दिया गया है। व्यावहारिकतावादियों के शिरोमणि जेम्स ने स्वयं कहा है कि कोई भी ज्ञान हमेशा के लिए सत्य नहीं होता है। आज जो सत्य है, वह कल असत्य हो सकता है एवं आज का असत्य कल सत्य भी हो सकता है। इसलिए कोई भी सत्य निरपेक्ष और अपरिवर्तनशील नहीं कहा जा सकता है। अतः इस मत के अनुसार निरपेक्ष सत्य नाम की कोई चीज नहीं है। सी.ई.एम. जोड के शब्दों में "Absolute truth is figment of the logicians, it is of no importance in practice." यानी किसी ज्ञान का परिणाम देखकर ही उसे सत्य या असत्य कहा जा सकता है। जिस ज्ञान से जीवन एवं व्यवहार में कोई अन्तर नहीं पडे. वह असत्य ज्ञान है। जो ज्ञान जीवन में कोई उपयोगी या लाभप्रद प्रभाव डाले, वही सत्य है। इस सम्बन्ध में Russell ने लिखा है-"Ideas, we are told by James, become true in so far as they help us to get into satisfactory relations with other parts of our experience. An idea is 'true' so long as to believe it is profitable to our lives." अत: जेम्स ने माना है कि इन्द्रियानुभववादी क्षेत्र में सत्य का नकद मूल्य रहता है। इसका तात्पर्य यह है कि कोई भी प्रत्यय या विचार आरंभ से ही सत्य या मिथ्या नहीं होता, बल्कि व्यावहारिक सफलता द्वारा परीक्षित हो जाने पर ही वह सत्य या असत्य सिद्ध होता है। जाँच या परीक्षा करने के पश्चात् ही सत्य अथवा असत्य का निर्णय देना विवेक सम्मत है। कभी-कभी किसी ज्ञान या प्रत्यक्ष का साक्षात् व्यावहारिक परीक्षण या जांच संभव नहीं होता है। ऐसी स्थिति में प्रत्यय-विशेष या कथन विशेष की सत्यता का निर्णय मनुष्य की नैतिक एवं भावनामूलक मांगों के द्वारा होना चाहिए। काण्ट के अनुसार ईश्वर में विश्वास हमारे नैतिक जीवन की एक आवश्यक मान्यता है। जेम्स का भी विचार है कि अगर ईश्वर का प्रत्यय हमारे 100

Loading...

Page Navigation
1 ... 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173