Book Title: Gyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 101
________________ हृदय तथा नैतिकता को संतुष्ट करता है तो वह सत्य कहा जा सकता है। इस प्रकार जेम्स ने नैतिक और धार्मिक विचारों में भी अनुभव और विश्वास को प्राथमिकता दी है। इनके अनुसार निषेध और तर्क के परे तत्त्व की कल्पना तिरोहित नहीं हो सकती है। अस्तु जीवन का महत्त्व कार्य करते हुए अनुभव प्राप्त करने में है, क्योंकि केवल प्रयोगात्मक सत्य ही आचरण को प्रभावित कर सकते हैं। पीयर्स ने भी माना था कि किसी विश्वास की सत्यता या किसी वस्तु का सत् आत्मगत न होकर वस्तुगत और प्रयोगपरक होता है। पीयर्स ने यह सिद्धान्त स्थापित करने का प्रयत्न किया है कि ज्ञान का सम्बन्धन केवल बुद्धि से नहीं वरन् संकल्प और कार्य से भी है। पीयर्स के अनुसार विश्वास या वस्तु का अर्थ उसका कार्य है। इन विचारों को विलियम जेम्स ने एक ऐसे विशद् दर्शन (फलवाद) के रूप में परिणत कर दिया कि बीसवीं शताब्दी में प्रत्येक दर्शन प्रभावित हुआ है। इन्होंने सत्य ज्ञान की कसौटी को सफल किया, तथा प्रयोजन - सिद्धि को जैविक आवश्यकताओं की तृप्ति माना है । सत्य सापेक्ष और साधनरूप में है। निरपेक्ष सत्य मृग मरीचिका है। जेम्स ने निरपेक्षवाद, अध्यात्मवाद, बुद्धिवाद या विवेकवाद का विरोध किया है। इन्होंने सत्य को परिवर्तनशील रूप में देखा और मनुष्य का सार तत्त्व उसमें निहित विश्वास करने की इच्छा को स्वीकार किया है। इन्होंने धर्म की विविध आलोचना अथवा धर्म पर विविध आक्रमण करने वालों की तीखी आलोचना की है। इनके अनुसार यह आक्रमण एक प्रकार का लड़कपन है। D.M. Dutta के शब्दों में "James criticizes the different kinds of attacks made on religion by persons who try to discredit it by showing its law origin, such as unbalanced hysterical mind, unhealthy nerves, perversion of the sexual instinct and the like. He poits out that such attempts are as childish as would be the attempt to refute the value of a scientific discovery or an industrial comodity by showing up the author's neurotic constitution. The origin is no criterion of value. Value must be as certained by its satisfactory results." डॉ. देवराज ने ठीक ही कहा है कि "हमारी आवश्यकताएं तर्कों एवं युक्तियों को उत्पन्न करती हैं, न कि हमारी युक्तियां आवश्यकताओं को' । इस प्रकार व्यावहारिकता अथवा उपयोगिता ही सत्यता की परिभाषा तथा कसौटी दोनों हैं । व्यवहारवादी सत्य की स्थापना के लिए कर्म तथा परिणाम के साथ-साथ विश्वास को भी महत्वपूर्ण मानते हैं जो विश्वास व्यावहारिक लक्ष्यों की सिद्धि अथवा मानवीय व्यवस्था एवं प्रगति में सहायक हो उसे सत्य कहा जा सकता है। जेम्स ने स्वयं कहा है कि कोई विश्वास सत्य है अगर वह हमें सफलता की ओर ले जाता है, अथवा मूल्यवान आदतों की स्थापना करता है। जब वह हमें पथभ्रष्ट कर देता है अथवा विघटनकारी आदतों को जन्म देता है तो वह मिथ्या है। 101

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