Book Title: Gyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 132
________________ बहुत अंश इस विधि में सिर्फ दो ही इसके गुण (क) यह विधि प्रयोग प्रधान विधि है। इससे मात्र शिक्षित ही नहीं बल्कि अनपढ़ एवं बच्चे भी लाभ उठा सकते हैं। बच्चे आँखें बन्द कर लेते हैं और उन्हें कोई वस्तु नहीं दिखती, फिर वे आँखें खोलते हैं और सामने की वस्तुएँ दिखने लगती हैं। इससे वे इस निष्कर्ष पर आते हैं कि चीज दिखाई पड़ने का कारण आँखों का खोलना है। अर्थात् आँखें ही देखने की इन्द्रियाँ हैं। (ख) यह प्रयोगप्रधान विधि है और इसलिये इसमें गलती की कम संभावना रहती है। (ग) इस विधि में सिर्फ दो ही उदाहरण लिये जाते हैं। (घ) इस विधि से बहुकारणवाद के सिद्धान्त से उत्पन्न कठिनाइयों को बहुत अंश में दूर कर सकते हैं। (ड) अन्वय विधि से कारण के सम्बन्ध में सिर्फ एक संकेत मिलता है किन्तु इससे निश्चितता सिद्ध हो जाती है। इसके दोष इस विधि की आवश्यकता पूरी करना कठिन है और इस विधि के प्रयोग में सतर्कता की आवश्यकता है, जो शिक्षितों से संभव हो सकता है, अनपढ़ और बच्चों से संभव नजर नहीं आता है। इसलिये इसका क्षेत्र संकुचित माना जाता है। इतना ही नहीं इससे असावधान रहने पर यत्पूर्व तत्कारणम् दोष से बचना और कठिन हो जाता है। बहुकारणवाद से उत्पन्न सभी बाधाओं को दूर करना इस विधि से संभव नहीं है। इस विधि में कारण और कारणांश में भेद नहीं किया जाता है। फिर भी अन्य विधियों की अपेक्षा यह विधि अधिक उपयुक्त एवं समीचीन प्रतीत होता है। फिर भी तर्कशास्त्रियों ने इनके प्रायोगिक विधियों की आलोचना करते हुए बतलाया है कि उनकी विधियों को आगमनात्मक विधि नहीं बल्कि निगमनात्मक विधियाँ कहना चाहिए। मिल ने स्वयं अपनी अवशेष विधि को निगमनात्मक है। वस्तुतः सत्य की खोज वाद-विवाद के द्वारा नहीं अपितु चिंतन-मनन के द्वारा की जा सकती है। गौतम बुद्ध, ऋषभदेव, महावीर, ईसा, महात्मा गांधी, शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, विवेकानन्द आदि महापुरुषों ने वाद-विवाद के द्वारा नहीं, चिंतन एवं आत्मानुभूति के द्वारा सत्य की प्राप्ति की है। अतः आगमन के विरोधाभास से बचने का उपाय एकमात्र अपरोक्षानुभूति ही है, जिससे मिल वंचित रहे हैं। संयुक्त अन्वय-व्यतिरेक विधि कार्य कार्य सम्बन्ध निश्चित करने की विधियों या पद्धतियों को प्रयोगात्मक विधियां कहा जाता है। मिल ने निरीक्षण और प्रयोग पर आधारित कुछ पद्धतियां बतलाई हैं, जिनका अनुकरण कर कारण-कार्य सम्बन्ध का पता लगाया जा सकता है। इनके पांच पद्धतियों में संयुक्त अन्वय व्यतिरेक विधि का अपना अलग स्थान रखता है। मिल ने इसकी परिभाषा देते हए लिखा है कि "If two or more instances in which the phenomenon under investigation 132

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