________________
प्रत्यय हैं। उन्हीं जन्मजात प्रत्ययों से यथार्थ ज्ञान बनता है। बुद्धिवाद और अनुभववाद की त्रुटियों की ओर इशारा करते हुए सी.ई.एम. जोड ने लिखा है कि, "It was this problem which, more than any other had led to the controversy between the rationalists and the empiricists. The rationalists had tended to reason away the actual stuff of our senseexperience, they were concerned with the world as it ought to be, not in the moral sense of the world "ought", but in the sense in which ought implies necessity. जोड साहब ने भी दोनों की आंशिक सत्यता को दर्शाया है। दर्शनशास्त्र में काण्ट का महत्त्वपूर्ण योगदान है। उनकी आंशिक सत्यता को अंगिकार कर लेना ही काण्ट की महत्त्वपूर्ण देन है। सी.ई. एम. जोड ने ठीक ही लिखा है कि "Kant's great contribution to philosophy is, therefore, to stress the activity of the experiencing subject. The mind in perception is not passive, but active. "
101
..102
अतः जहां अनुभववादियों ने बुद्धि को निष्क्रिय माना है और मन को सादे स्लेट की तरह बतलाया है, इनकी दृष्टि में जन्म से कोई प्रत्यय नहीं रहता है। जो प्रत्यय उसमें है, वे अनुभव से उपार्जित हैं। जब तक अनुभव से प्रत्यय नहीं मिलते, तब तक बुद्धि निष्क्रिय बनी रहती है। उसमें ज्ञान की शक्ति रहती है, पर निष्क्रिय रूप में। ज्योंही अनुभव से प्रत्यय आते हैं, त्योंही वह सक्रिय हो जाती है। जैसा कि पहले बतलाया जा चुका है कि काण्ट की दृष्टि में बुद्धिवाद और अनुभववाद दोनों आंशिक सत्य बतला रहे हैं। यानी दोनों के मत में आंशिक सत्यता है। बुद्धि सक्रिय भी है और निष्क्रिय भी । उसमें जनमजात प्रत्यय भी है, अनुभवजन्य संवेदनाएँ भी । अनुभव की संवेदनाएँ जब बुद्धि तक पहुंचती हैं, तब बुद्धि अपने जन्मजात प्रत्ययों के साथ सक्रिय हो जाती है और संवेदनाओं को व्यवस्थित कर ज्ञान बनाती है ।
दोनों मतावलम्बियों के बीच ज्ञान की पद्धति को लेकर भी मौलिक भेद है। ज्ञान की निगमनात्मक पद्धति को बुद्धिवादियों ने स्वीकार किया है जबकि अनुभववादियों ने आगमनात्मक पद्धति को ही महत्त्वपूर्ण बतलाया है। निगमनात्मक पद्धति के मुताबिक बुद्धि में जो जन्म से प्रत्यय विद्यमान हैं, उनसे अन्य प्रत्ययों को निःसृत किया जाए। फ्रेंच दार्शनिक देकार्त का कहना है कि हमारे मन में आत्मा संबंधी प्रत्यय हैं। उसी प्रत्यय से उन्होंने ईश्वर की सत्ता को सिद्ध किया है। फिर ईश्वर की सत्ता से उन्होंने विश्व की सत्ता सिद्ध की है। इस तरह से उन्होंने एक बिन्दु से अन्य सारे दार्शनिक तथ्यों की उद्भावना की है। अनुभववादियों की आगमनात्मक पद्धति निरीक्षण-परीक्षण पर आधारित है। निरीक्षण एवं परीक्षण मन का भी हो सकता है। संभवतः लॉक की मनोवैज्ञानिक पद्धति इसी आधार पर निकली है। निरीक्षण और परीक्षण बाह्य तथ्यों का भी हो सकता है। इसी निरीक्षण और प्रयोग के आधार पर अनुभववादियों ने वैज्ञानिक पद्धति को अपना आदर्श माना है। बुद्धिवादियों का जोर निगमनात्मक पद्धति पर
96