Book Title: Gyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 97
________________ था, क्योंकि गणित ही उनके ज्ञान का आदर्श है अनुभववादियों का मोह आगमनात्मक पद्धति से है, क्योंकि प्राकृतिक विज्ञान तथा मनोविज्ञान उनके ज्ञान का आदर्श है। काण्ट ने उपर्युक्त दोनों मतों का समन्वय किया। उनका कहना है कि गणित का भी महत्त्व है और प्राकृतिक विज्ञानों का भी यथास्थान महत्त्व है और आगमन एवं निगमन दोनों ही पद्धतियों से वास्तविक ज्ञान मिल सकता है। काण्ट के सामने दो प्रश्न हैं- क्या गणित से यथार्थ ज्ञान मिलता है? क्या प्राकृतिक विज्ञानों से यथार्थ ज्ञान मिलता है? काण्ट ने उपर्युक्त दोनों प्रश्नों का भावात्मक उत्तर दिया है? सर्वप्रथम काण्ट ने ज्ञान की एक निश्चित परिभाषा अपने सामने रखी है। इनका कहना है कि यथार्थ ज्ञान के तत्त्वों का समावेश बुद्धिवाद और अनुभववाद दोनों में है। बुद्धिवादियों के मुताबिक ज्ञान के दो तत्त्व हैं- सार्वभौमिकता और अनिवार्यता । अनुभववादियों के अनुसार ज्ञान हमेशा नवीन होता है। काण्ट ने बतलाया है कि ज्ञान - सार्वलौकिक, अनिवार्य एवं नवीन होता है सार्वलौकिकता और अनिवार्यता बुद्धि की देन है एवं नवीनता अनुभव की देन है । काण्ट के मुताबिक हमारा ज्ञान अनुभव से प्रारम्भ होता है। इसका मतलब यह नहीं कि यह मात्र अनुभव की उपज है । यथार्थ ज्ञान में बुद्धि और अनुभव दोनों का समान योगदान है। सार्वलौकिकता एवं अनिवार्यता जितना आवश्यक है, उतनी ही आवश्यकता नवीनता की है। इस प्रकार काण्ट का ज्ञानवाद अनुभववादियों तथा बुद्धिवादियों के ज्ञानवाद का समन्वय है । चूंकि इन दोनों से परे एक अनुभवातीत (Transcendental) दर्शन की स्थापना ही काण्ट का मुख्य ध्येय रहा है। इसलिए दोनों से अपनी ममतामयी भावना से सम्बन्ध विच्छेद कर लेते हैं। अर्थात् इन्होंने दोनों से कोई मोह नहीं रखा है। I काण्ट ने अपने को दोनों का परिहार कर्त्ता के रूप में दर्शाने की चेष्टा की है किन्तु उन्हें इसमें पूर्ण सफलता नहीं मिली है। काण्ट की दृष्टि में ज्ञान सार्वलौकिक, अनिवार्य एवं नवीन होता है। उन्होंने यह भी कहा है कि ऐसा ज्ञान भौतिक विज्ञान और गणित में संभव है । किन्तु भौतिक विज्ञान का इतिहास इस परिभाषा के प्रतिकूल है गणित के सम्बन्ध में सार्वलौकिक और अनिवार्यता की चर्चा करना उचित है। परन्तु उसे अनुभव - सापेक्ष बतलाना उचित नहीं है। गणित शुद्ध रूप से बुद्धि पर आधारित है। उसमें नवीनता के बजाय शाश्वत सत्यों की उद्भावना होती है। मूर्त्त के बजाय शाश्वत सत्यों की उद्भावना होती है । मूर्त के बजाय अमूर्त चिन्तन होता है। इस तरह काण्ट की ज्ञान- परिभाषा न भौतिक विज्ञान पर लागू है और न गणित-विज्ञान पर । किन्तु इसका अर्थ कदापि नहीं लगाया जाना चाहिए कि काण्ट का कोई महत्त्व ही नहीं है। वस्तुतः ज्ञान के क्षेत्र में उनकी देन को भुलाया नहीं जा सकता है। इनके संबंध में बट्रैंड रसेल ने ठीक ही लिखा है कि, "Imanual Kant (1724-1804) is generally considered the greatest of modern philosophers. I can not myself 97

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