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न होना' इन दोनों के संयुक्त रूप को हेतु मानना पड़ेगा। लेकिन इस संयुक्त रूप में 'देवदत्त का घर के बाहर होना पहले से ही शामिल है, जिसे कि प्रतिपक्षी अनुमान से सिद्ध करना चाहता है। तात्पर्य यह है कि यहां निष्कर्ष हेतु के अन्दर पहले से ही विद्यमान रहता है जबकि अनुमान में कभी ऐसा नहीं होता। एक अन्य तर्क यह दिया जा सकता है कि अनुमान में आधार (धूम) उत्पन्न होता है और निष्कर्ष (अग्नि) उपपादक होता है, जबकि यहां आधार ('जीवित होते हुए घर के अन्दर न रहना') उपपादक होता है और निष्कर्ष ('बाहर होना') उपपन्न होता है। सच्चाई यह है कि अर्थापत्ति वियोजक हेत्वानमान है. साधारण अर्थ में अनुमान नहीं। यदि हम उसे साधारण अनमान के रूप में रखें तो व्याप्ति एक निषेधात्मक पूर्णव्यापी तर्क वाक्य होगी, जिसे नैयायिक के विपरीत मीमांसा के दोनों सम्प्रदायों के अनुयायियों ने अनुमान के आधार के रूप में स्वीकार नहीं किया है। वे केवल अन्वय-व्याप्ति को मानते हैं, व्यतिरेक व्याप्ति को नहीं। इस प्रकार जहां अन्वय-व्याप्ति सम्भव न हो, वहां अर्थापत्ति के लिए गुंजाइस रह जाती है।
अत: मीमांसकों द्वारा प्रस्तुत अर्थापत्ति की अवधारणा उपयुक्त एवं युक्तिसंगत प्रतीत होता है। वेदान्तियों ने भी अपने ढंग से मीमांसकों के द्वारा उपर्युक्त मत का समर्थन किया है अर्थात् वेदान्तियों ने भी इसे अन्य प्रमाणों की तरह पृथक् एवं स्वतंत्र प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है। इस सम्बन्ध में रामानुज का मत आज भी उपयोगी सिद्ध हो रहा है।