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आधुनिक दर्शन को दो भागों में विभक्त किया गया है-बुद्धिवादी एवं अनुभववादी। बुद्धिवादियों ने बुद्धि को ज्ञान का प्राथमिक स्रोत माना है और अनुभववादियों ने अनुभव को ही ज्ञान का प्राथमिक स्रोत बतलाया है। जहां तक अनुभववाद का प्रश्न है, यह जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि अनुभव को समस्त ज्ञान का स्रोत मानता है। इसके अनुसार मनुष्य को ज्ञान उसकी विभिन्न इन्द्रियों के माध्यम से प्राप्त संवेदनाओं के कारण होता है। अनुभववादियों के अनुसार हमारे मन में जितने भी प्रत्यय हैं, वे सभी अनुभव से प्राप्त हुए हैं। लॉक ने स्वयं कहा है कि "Mind at birth is a clean slate or 'tabula rasa' and all the characteristics of knowledge are acquired through experience." इस सम्बन्ध में सी.ई.एम. जोड ने ठीक ही लिखा है fon "Philosophy provides us roughly with two main historical answers to the question of how we obtain knowledge. The first is that knowledge is in fact obtained entirely in and through the sense experience.88 स्पष्ट है कि अनुभववादियों की दृष्टि में अनुभव ही ज्ञान प्राप्ति का साधन है। इन्होंने बुद्धिवाद के जन्मजात प्रत्ययों की धारणा का घोर विरोध किया है। इनका कहना है कि यदि ईश्वर, आत्मा, कार्य-कारण-नियमों के जन्मजात प्रत्यय हमारे मन में जन्म से ही होते तो चेतन मन को उनका ज्ञान रहना चाहिए था। किन्तु अनुभव इस बात का साक्षी है कि ऐसे जन्मजात प्रत्ययों की चेतना जन्म से ही किसी को नहीं रहती है। जितने प्रकार के प्रत्यय हैं, वे सभी अनुभव से प्राप्त हुए हैं। ज्ञान का कोई भी अंश अनुभव निरपेक्ष नहीं है। अनुभव के पूर्व मस्तिष्क साफ कागज अथवा कोरी स्लैट के सदृश्य रहता है। अनुभव के द्वारा ही इसमें विचार अंकित होते हैं।
जहां बुद्धिवादियों ने बुद्धि को सक्रिय कहा है, वहां अनुभववादियों ने बुद्धि को निष्क्रिय माना है। इस सिद्धान्त के मुताबिक ज्ञान निर्णयों की समष्टि है। प्रत्ययों को एकत्रित अथवा संग्रहित करने पर ही निर्णय बनते हैं। इसलिए ज्ञान के आदि तत्त्व प्रत्यय ही हैं। इन प्रत्ययों की उत्पत्ति अनुभव से होती है। मन या बुद्धि प्रत्ययों को सिर्फ ग्रहण करते हैं। इसीलिए मन अथवा बुद्धि को निष्क्रिय माना गया है।
बुद्धिवादियों की दृष्टि में निगमनात्मक पद्धति ही सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है जबकि अनुभववादियों का कहना है कि आगमन विधि ही कारगर ठहरती है। इसीलिए इन्होंने ज्ञान प्राप्ति के लिए आगमनात्मक विधि की ही सहायता ली है। अनुभव से विशेषों की जानकारी होती है। विशेषों के ज्ञान के आधार पर आगमनात्मक विधि के द्वारा सामान्य ज्ञान मिलता है। इसीलिए अनुभववादियों ने आगमनात्मक विधि को अपनाया है।
बुद्धिवाद गणित विज्ञान को दर्शन का आदर्श मानता है, परन्तु अनुभववाद वस्तुनिष्ठ विज्ञान को ही आदर्श स्वीकार करता है। गणित धारणात्मक है। इसके विषय में वस्तुसंवादी होने का कोई सवाल नहीं उठता है।
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