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विवेचना की गई है अर्थात् भारत में दर्शन और धर्म साथ-साथ रहे हैं। सामान्य धर्म के 30 लक्षण बतलाये गये हैं-सत्य, तप, सुचिता, दया, कष्ट-सहिष्णुता, नीर-क्षीर विवेक, मन पर नियंत्रण, इन्द्रिय संयम, ब्रह्मचर्य, त्याग, अहिंसा, स्वाध्याय, संतोष, सरलता, सम्यक् दृष्टि, सेवा क्रमशः सांसारिक त्याग, लौकिक सुख के प्रति उदासीनता, मौनव्रत, आत्म-चिन्तन, सभी प्राणियों में अपने आराध्य का दर्शन और उन्हें अन्न देना।" यह चार्वाक को छोड़कर सभी भारतीय दार्शनिकों को मान्य है। धम्मपद, तत्त्वार्थसूत्र, ब्रह्मसूत्र, श्रीमद्भगवद्गीता आदि में भी इसकी विशद् विवेचना की गई है।