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अर्थ प्राच्य और पाश्चात्य दोनों दृष्टियों से संकेत के रूप में किया जा चुका है। यहां इतना बतला देना आवश्यक प्रतीत होता है कि दर्शन के सामान्य लक्षण कौन-कौन से हैं? दार्शनिकों ने निम्नलिखित प्रमुख लक्षणों की चर्चा की है
(क) दर्शन सम्पूर्ण विश्व की सुव्यवस्थित और युक्तिसंगत व्याख्या प्रस्तुत करने की कोशिश करता है।
(ख) दार्शनिक चिन्तन की उत्पत्ति बौद्धिक जिज्ञासा से होती है।
(ग) दार्शनिक चिन्तन निष्पक्ष होता है। दार्शनिक अपने मनोवेगों एवं संवेगों का प्रभाव दर्शन पर नहीं पड़ने देता है। उसके चिन्तन में किसी तरह के पक्षपात की बू नहीं दीख पड़ती है। उसे तो निष्पक्ष होकर सत्यान्वेषण करना पड़ता है। निष्पक्ष चिन्तन ही उच्च कोटि का दर्शन माना जाता है।
(घ) दार्शनिक चिन्तन में व्यावहारिक पक्ष की अपेक्षा सैद्धान्तिक पक्ष पर अधिक जोर दिया जाता है।
(ङ) दर्शन में आराध्य और आराधक अथवा उपास्य एवं उपासक का प्रश्न नहीं उठता है क्योंकि इसमें किसी की पूजा की बात न होकर सत्य का साक्षात अनुभव प्राप्त करना ही मुख्य लक्ष्य रहता है। इसमें गणारोपण का निषेध करना भी मान्य है किन्तु धर्म में अक्सर गण का आरोपण किया जाता रहा है।
जहां तक दोनों में (दर्शन और धर्म में) सम्बन्ध का प्रश्न है धर्म और दर्शन के बीच समानता, विभिन्नता एवं इनके वास्तविक सम्बन्ध पर विचार करना उचित प्रतीत होता है। इन समस्याओं पर पाश्चात्य और प्राच्य दोनों दृष्टिकोण से विचार करना आवश्यक जान पड़ता है।
पाश्चात्य दृष्टिकोण-दर्शन और धर्म में समानता-दर्शन एवं धर्म दोनों समग्र विश्व की व्याख्या करने का प्रयत्न करते हैं।
दोनों की विषय-वस्तु एक ही है। इस सम्पूर्ण विश्व के अध्ययन के अन्तर्गत सभी तरह के अनुभव एवं सभी प्रकार के ज्ञान-विज्ञान अन्तर्निहित हैं। धर्मशास्त्र भी एक प्रकार का ज्ञान ही है। अतः दर्शन समग्र विश्व का अध्ययन करने के समय धर्म का भी अध्ययन कर लेता है।
दोनों में दूसरी समानता यह है कि दोनों में ही तत्त्व-सम्बन्धी विवेचना होती है। दोनों का ही लक्ष्य चरम सत्यता अथवा वास्तविकता की खोज करना
से विचार पाश्चात्य दृष्टिा करने का प्रयही है। इस सा
है।
अन्तर-दर्शन और धर्म में उपर्युक्त समानताओं के साथ-साथ कुछ मौलिक अन्तर भी हैं। ये अन्तर निम्नलिखित हैं
(क) उत्पत्ति में भेद-दर्शन की उत्पत्ति जिज्ञासा से होती है किन्तु धर्म की उत्पत्ति आध्यात्मिक असंतोष (Spiritual Hunger or Dissatisfaction) से होती है।
(ख) उद्देश्य में भेद-दोनों के उद्देश्य भी भिन्न हैं। दर्शन का उद्देश्य सम्पूर्ण विश्व की व्याख्या करना है, पर धर्म का उद्देश्य आध्यात्मिक मूल्यों की वास्तविक सिद्धि है।