Book Title: Gyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 35
________________ तदगतेचाग्नौ सन्दिहान पर्वते धूमं पश्चन व्याप्ति स्मरति यत्र धूम सामाग्निरिति । तदनन्तरं वहिन व्याप्यधूमवानयं पर्वत इति ज्ञान मुत्पद्यते । अयमेव लिंगपरामर्श इत्युच्यते। तस्मात् पर्वतोवाह्निमानितिज्ञानमनुमिति रूप्पद्यते । तदेतत्स्वार्थानुमानम् । अर्थात् अनुमान के प्रभेद दो हैं - स्वार्थानुमान और परार्थानुमान । स्वार्थ अनुमिति का हेतुभूत अनुमान कहलाता है - स्वार्थानुमान । तदनन्तर यह पर्वत वहिनव्याप्य धूम युक्त है। ऐसा ज्ञान उस व्यक्ति को उत्पन्न होता है, यही कहलाता है लिंग परामर्श। तब उसे पर्वत अग्नि युक्त है, यह अनुमिति स्वरूप ज्ञान उत्पन्न होता है। इस प्रकार स्वार्थानुमिति का हेतुभूत ज्ञान कहलाता है। नियत और अनौपाधिक सम्बन्ध को ही व्याप्ति सम्बन्ध कहा जाता है और यही व्याप्ति सम्बन्ध अनुमान का आधार है। न्याय के अनुसार अनुमान के विभिन्न भेद न्याय दर्शन में तीन दृष्टिकोण से अनुमान के वर्गीकरण किये गये है- (क) प्रयोजन के अनुसार (ख) प्राचीन न्याय अथवा गौतम के अनुसार एवं (ग) नव्य न्याय के अनुसार । प्रयोजन के अनुसार अनुमान दो तरह के होते हैं - (1) स्वार्थानुमान एवं ( 2 ) परार्थानुमान। अनुमान दो उद्देश्यों से किये जा सकते हैं-अपनी शंका के समाधान के लिए अथवा दूसरों के सम्मुख किसी तथ्य को सिद्ध करने के लिए। जब अनुमान अपनी शंका के समाधान के लिए किया जाता है तो उसे 'स्वार्थानुमान' कहते हैं। आनन्द झा के शब्दों में- "स्वार्थनुमिति वह है, जहां उद्देश्य उपदेशक भाव का प्रयोजन नहीं होता है। अनुमाता अनुमापक हेतु को प्रकृतधर्मी में देखकर स्वयं अनुमेय की अनुमिति उस धर्मी में कर लेता है। जैसे कोई मनुष्य पर्वत से उठने वाली धूम शिखा को देखकर "यह पर्वत अग्नि वाला है” इस प्रकार अनुमिति करता है। ऐसी अनुमति स्वार्थानुमिति कहलाती है। यानी कभी-कभी हम अपने ज्ञान के लिए अनुमान करते हैं इसे स्वार्थानुमान कहा जाता है। ऐसे अनुमान में तीन तरह के वाक्य रहते हैं-निगमन, हेतु और व्याप्ति वाक्य जैसे राम मरणशील है- निगमन क्योंकि वह मनुष्य है- हेतु एवं सभी मनुष्य मरणशील हैं-व्याप्तिवाक्य अथवा उदाहरण - पाश्चात्य तर्कशास्त्र में वृहत् वाक्य, लघुवाक्य एवं निष्कर्ष कहे जाते हैं। नैयायिकों के तीनों पद साध्य, पक्ष एवं हेतु को पाश्चात्य न्याय में क्रमशः वृहत् पद, लघुपद और मध्यवर्ती पद कहा जाता है। जब अनुमान दूसरों को समझाने के लिए किया जाता है तो उसे परार्थानुमान कहा जाता है दूसरे शब्दों में कभी-कभी किसी बात को दूसरों को समझाने के लिए भी अनुमान करते हैं। यह परार्थ अनुमान कहलाता है। इसमें पाँच वाक्य होते है-प्रतिज्ञा, हेतु, व्याप्ति वाक्य उपनय एवं निगमन इसे 'पंचावयव न्याय' कहते हैं। उदाहरण के लिए (1) राम मरणशील है - प्रतिज्ञा । 35

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