Book Title: Gyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 34
________________ virtue of a relation of invariable concomitance (vyîpti) between the two." अर्थात् अनुमान बुद्धि की वह प्रक्रिया है, जिसमें किसी लिंग या हेतु के ज्ञान के आधार पर किसी दूसरी वस्तु का ज्ञान प्राप्त किया जाता है, क्योंकि उस वस्तु तथा लिंग के बीच व्याप्ति-सम्बन्ध का ज्ञान रहता है। उदाहरण के लिए धूम (लिंग या हेतु) के प्रत्यक्ष के आधार पर आग का ज्ञान प्राप्त किया जाता है चूंकि धूम और आग के बीच व्याप्ति-सम्बन्ध का ज्ञान पूर्व से ही रहता है। इसीलिए एस.सी. चटर्जी ने लिखा है-"An unumana has been defined in the Nyîya system as the knowledge of an object, not by direct observation, but by means of knowledge of a linga or sign and that of its universal relation (vyîpti) with the infered object." अनुमान के अवयव-अनुमान में तीन पद और कम से कम तीन वाक्य होते हैं। पद-लिंग या हेतु, साध्य एवं पक्ष। कप्पूस्वामी शास्त्री के अनुसार-"Students of Nyaya, before they proceed to study the chapter on anum îna, should start with a clear conception of the meaning of the technical terms. Pakya, sadhya and hetu or sadhana,........pakna corresponds to the minor term, the term pakya itself standing for the substantive with reference to which something has to be infered or inferentially predicted, the term denoting sadhya corresonds to the major term.....**** जो वस्तु सिद्ध की जाए, उसे 'साध्य' और जिसके द्वारा वह सिद्ध की जाती है, उसे साधन कहते हैं।" हेतु उसे कहते हैं, जिसके द्वारा पक्ष के सम्बन्ध में साध्य सिद्ध किया जाता है। साध्य का सम्बन्ध पक्ष के साथ है। यह हेतु के द्वारा ही सिद्ध होता है। साध्य उसे कहते हैं, जो पक्ष के सम्बन्ध में सिद्ध किया जाता है। पक्ष अनमान का वह अंग है, जिसके सम्बन्ध में अनुमान किया जाता है। वाक्य-निगमन, हेतु और व्याप्ति वाक्य। न्यायशास्त्र में इसे स्वार्थानुमान का उदाहरण बतलाया गया है क्योंकि यहाँ अपनी शंका के समाधान के लिए या दूसरों के सम्मुख किसी तथ्य को सिद्ध करने के लिए अनुमान किया गया है। नैयायिकों के तीनों पद साध्य, पक्ष और हेतु पाश्चात्य न्याय में क्रमशः वृहत्पद, लघुपद एवं मध्यवर्तीपद के नाम से पुकारे जाते हैं। उदाहरण के लिए "जहां-जहां धुआं है वहां-वहां आग है। इस पहाड़ पर धुआँ है, अतः इस पहाड़ पर आग है।" इस उदाहरण में धुआं लिंग या हेतु है। लिंग या हेतु का अर्थ चिहन है। ऊपर के उदाहरण में धुआं लिंग या हेतु है। लिंग या हेतु को साधन भी कहा जाता है। आग साध्य है और पहाड़ पक्ष है। धुआं यहां साधन अथवा चिह्न है और अग्नि साध्य है। अनुमानं द्विविधं स्वार्थे परार्थेच। तत्र स्वार्थ स्वानुमितिहेतुः । तथाहि स्वयमेव भूयोदर्शनेन यत्रयत्रधूमसात्रतत्राग्निरिति महानसादौ व्याप्तिं गृहीव्वा पर्वतसमीपंगतः, 34

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