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सर्वानुभवसिद्ध होने के कारण भगवत्संकेत स्वरूप शक्ति को भी उनकी इच्छा ही मानना उचित होगा। किन्तु आनन्द झा का कहना है कि प्रमा, अप्रमा, संशयनिश्चय, प्रत्यक्षानुमिति इत्यादि रूप में मतिज्ञान की विभिन्नता के कारण आधुनिक संकेत को सामान्यतः ज्ञान स्वरूप मानना कठिन होगा। 'घटपदात् कम्बुग्रीवादिमान् बोद्धव्यः इस संकेत से घट पद से कम्बुग्रीवा आदि युक्त जलाहरण पात्र समझे जाने के कारण संकेत को ही शक्ति मानना उचित है। नैयायिकों को अटूट विश्वास है कि ईश्वर ने आजानिक संकेत को निश्चित रूप से शब्दों में भर दिया है। इस प्रकार के संकेत उत्पन्न करने में मनुष्य का कोई हाथ नहीं है। महर्षि गौतम की तरह ही उदयनाचार्य आदि ने भी आजानिक संकेत को भगवत्संकेत ही सिद्ध किया है। हरिमोहन झा आदि ने भी इसकी विशद विवेचना की है।
आधुनिक संकेत - यह ईश्वर प्रदत न होकर मनुष्य प्रदत संकेत है। मनुष्य अपनी इच्छा के मुताबिक शब्दों में अर्थ व्यक्त करने की क्षमता मान लेता है। इसे ही आधुनिक संकेत कहा जाता है। उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति अपने पुत्र का नाम राम, श्याम, पटेल आदि रखता है तो कोई अपने कुत्ते को मोती कहता है । ये आधुनिक संकेत के उदाहरण हैं। ये सामयिक होते हैं।
न्यायशास्त्र में शब्द का वर्गीकरण एक अन्य दृष्टि से दो प्रकार से होता है- (1) ज्ञान के विषय के अनुसार एवं ( 2 ) ज्ञान के स्रोत के अनुसार । ज्ञान के विषय के अनुसार शब्द के दो भेद हैं- दृष्टार्थ एवं अदृष्टार्थ । ज्ञान के स्रोत या उत्पत्ति के अनुसार भी शब्द के दो भेद हैं- लौकिक एवं वैदिक |
दृष्टार्थ - यह शब्द जिससे ऐसी वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त होता है, जिनका प्रत्यक्ष हो सके, दृष्टार्थ शब्द कहलाता है। दूसरे शब्दों में दृष्टार्थ शब्द उसे कहते हैं, जिससे दृष्ट वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त होता है। यानी यह शब्द इस विश्व के प्रत्यक्ष होने वाले पदार्थों के विषय में ज्ञान देता है। इस प्रकार के शब्द का अर्थ (विषय) इस वर्तमान विश्व में प्रत्यक्ष रूप से दिखलाई पड़ता है। अगर कोई विश्वसनीय व्यक्ति गंगा या कुतुबमीनार अथवा लखनऊ की भूलभुलैया के विषय में कुछ कहता है तो उसके शब्द दृष्टार्थ कहे जायेंगे क्योंकि गंगा, कुतुबमीनार एवं लखनऊ की भूलभुलैया का प्रत्यक्ष इस विश्व में किया जा सकता है।
अदृष्टार्थ-यह वह शब्द है जिससे अदृष्ट वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त होता है । दूसरे शब्दों में अदृष्टार्थ शब्द वह शब्द है, जो हमें इन्द्रियातीत पदार्थों के विषय में ज्ञान देता है। इस प्रकार के शब्दों का अर्थ इस विश्व के परे अर्थात् अलौकिक विषयों से सम्बन्ध रखता है। जिन विषयों के बारे में अदृष्टार्थशब्द होते हैं उनका इन्द्रियानुभूति अथवा प्रत्यक्षीकरण इस विश्व में संभव नहीं है। फिर भी इनकी सत्यता में हमें कोई संदेह नहीं रहता, चूंकि ये आप्त पुरूष के कथन होते हैं। इन्हीं आप्त पुरूषों के दृष्टार्थ शब्दों की सत्यता प्रत्यक्ष के द्वारा हमें ज्ञात होती है। इसी आधार पर हम इनके अदृष्टार्थ शब्दों को भी यथार्थ और सत्य मानते हैं। उदाहरण के लिए वैज्ञानिकों के अणु, परमाणु इत्यादि के विषय
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