________________
सुख-दुःख, इच्छा इत्यादि) का प्रत्यक्ष हमें होता है। यह सामान्य नियम है कि गुण या चिह्न किसी आश्रय में ही रह सकते हैं। इस प्रकार हम अनुमान करते हैं कि इन गुणों के आधार के रूप में कोई सत्ता अवश्य है । यह सत्ता निश्चय ही 'आत्मा' है। I
इस तरह हम देखते हैं कि यह अनुमान कार्य-कारण-सम्बन्ध के द्वारा नहीं होता है बल्कि सामान्य सादृश्य के अनुभवों के द्वारा ही संभव होता है। अतः यह अनुमान उपमान से मिलता-जुलता है।
नव्य - न्याय के एक तीसरे प्रकार के भेद के अनुसार अनुमान तीन तरह के होते हैं- (1) केवलान्वयी (2) केवल व्यतिरेकी एवं (3) अन्वयव्यतिरेकी । अनुमान के ये तीनों रूप व्याप्ति की विधि पर आधारित हैं ।
दत्त एवं चटोपाध्याय के शब्दों में यह प्रकार-भेद बहुत युक्तिपूर्ण है, क्योंकि यह व्याप्ति-स्थापन प्रणाली के प्रकार-भेद पर अवलम्बित है । 1
,46
यहां नव्य नैयायिकों की व्याख्या कुछ और ही है। उनका कहना है कि "पूर्ववत्" का अर्थ है- "केवलान्वयी, शेषवत् का अर्थ है - "केवलव्यतिरेकी" और "सामान्यतोदृष्ट" का अर्थ है-"अन्वयव्यतिरेकी" "
अब प्रश्न उठता है कि व्याप्ति क्या है? दो वस्तुओं के बीच नियत अनौपाधिक एवं सामान्य सम्बन्ध को व्याप्ति कहा जाता है।
(1) केवलान्वयी - जब मात्र भावात्मक उदाहरणों के आधार पर स्थापित व्याप्ति को अनुमान का आधार बनाया जाता है, तब उसे केवलान्वयी अनुमान कहते हैं। दूसरे शब्दों में केवलान्वयी अनुमान उसे कहते हैं, जिसके साधन तथा साध्य में नियत साहचर्य देखा जाता है। अर्थात् जिसकी व्याप्ति केवल अन्वय के द्वारा स्थापित होती है और जिसमें व्यतिरेक का सर्वथा अभाव होता है। 18.
यानी यहाँ निषेधात्मक उदाहरण नहीं लिये जाते हैं। जैसे
(क) यह नौकर रखने योग्य है- प्रतिज्ञा ।
(ख) क्योंकि यह नौकर ईमानदार है-हेतु
(ग) और जो ईमानदार होता है, उसे नौकर रखा जा सकता है, जैसे - मोहन, सोहन, चंदू रहीम आदि उदाहरण ।
(घ) यह नौकर ईमानदार है- उपनय ।
(ड) यह नौकर रखने योग्य है-निगमन।
उपर्युक्त अनुमान में सभी उदाहरण भावात्मक हैं । यहाँ कोई भी उदाहरण निषेधात्मक नहीं है। यह अनुमान जे. एस. मिल के द्वारा प्रस्तुत अन्वय विधि से मिलता-जुलता है।
(2) केवल व्यतिरेकी-यह वह अनुमान है, जिसमें साध्य के अभाव के साथ-साथ साधन के अभाव की व्याप्ति के ज्ञान से अनुमान होता है, । साधन और साध्य की अन्वयमूलक व्याप्ति से नहीं यानी निषेधात्मक उदाहरणों के द्वारा स्थापित व्याप्ति पर आधारित अनुमान ही केवल व्यतिरेकी अनुमान कहा जाता है। उदाहरण के लिए - (क) यह हिमालय पहाड़ है - प्रतिज्ञा ।
38