Book Title: Gyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 43
________________ प्रत्यक्ष और अनुमिति के समान उपमिति भी एक स्वतंत्र प्रमिति है। इसकी प्रक्रिया वह है, जैसे किसी ने किसी से कहा कि “विषहरणी बूटी के पौधे मूंग के पौधे के समान हैं। कभी उस श्रोता को दवाई के लिए विषहरणी बूटी की जरूरत हुई तो जंगल में जाकर ढूंढने लगा। निश्चय किया कि “यह विषहरणी है" यही निश्चय उपमिति ज्ञान कहलाता है। "उपमितिकरणं उपमानम्। संज्ञासंज्ञि सम्बन्धज्ञानमुपमितिः, तत्करणं सादृश्यज्ञानम्। तथाहि कश्चित गवयपदार्थमजननकुतश्चिंतं आरण्यक पुरुषात् गोसदृशः गवयः इति श्रुत्वा वनं गतः। वाक्यार्थ स्मरन गोसदशं पिण्डं पश्यति। 'तदनन्तरम् असौ गवयपद वाच्यः' इव्युपमितिः उत्पद्यते।"53 अब प्रश्न उठता है कि क्या सभी प्रकार के सादृश्य उपमिति के आधार कहे जा सकते हैं? उत्तर होगा नहीं। वही सादृश्य उपमिति का प्रामाणिक आधार कहला सकता है, जिसमें जाति या सामान्य की एकता अथवा समरूपता पाई जाय। अतः सादृश्य के लिए दो वस्तुओं में सम्बन्ध सजातीय होना चाहिए न कि विजातीय। कौआ और हाथी में विजातीय सम्बन्ध है चूंकि इनमें पहला पक्षी है और दूसरा जानवर है। कुत्ता और भेड़िया अथवा गवय और गाय दोनों के दोनों जानवर जाति के हैं यानी दोनों में सजातीय सम्बन्ध है। उपमिति का विश्लेषण करने पर उसके अन्तर्गत चार तत्त्व उभर कर आते हैं। वे हैं (क) किसी विश्वसनीय व्यक्ति का कथन कि अमुक अज्ञात वस्तु अथवा व्यक्ति ज्ञात वस्तु, जीव अथवा व्यक्ति के समान होता है, जैसे-भेड़िया बड़े कुत्ते कीतरह होता है अथवा गवय गाय की तरह होता है। (ख) सादृश्यधी-किसी जीव या वस्तु को देखकर पूर्व ज्ञान जानवर या वस्तु से उसकी समानता का अनुभव करना। (ग) वाक्यार्थ स्मृति-सादृश्य अनुभव करने पर विश्वसनीय व्यक्ति का कथन याद पड़ना। (घ) उपमिति-उस नई वस्तु का ज्ञान हो जाना। ज्ञान चार तत्त्वों में 'सादृश्यधी' अर्थात् सादृश्य-ज्ञान ही सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसीलिए सादृश्य-ज्ञान ही उपमिति का सबसे अधिक समीपवर्ती साधन माना गया है। प्राचीन नैयायिकों ने सादृश्य को ही उपमिति का आधार मान लिया है किन्तु बाद के नैयायिकों ने समानता के साथ-साथ विषमता और विचित्रता को भी उपमिति का आधार स्वीकार कर लिया है। इसीलिए उपमान तीन प्रकार के हो जाते हैं-(क) साधोपमान, (ख) वैधोपमान एवं (ग) धर्ममात्रोपमान। (क) साधोपमान उसे कहते हैं, जो सादृश्य निश्चय मूलक होती है। दूसरे शब्दों में यदि किसी ज्ञात वस्तु के सादृश्य के आधार पर किसी दूसरी वस्तु की वस्तुवाचकता का ज्ञान प्राप्त किया जाये तो यह साधोपमान कहलाता है। उदाहरण-बड़े कुत्ते के सादृश्य के आधार पर भेड़िया पद की वस्तुवाचकता का ज्ञान प्राप्त करना ही साधोपमान है। 43

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