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जिस साधन से यथार्थ ज्ञान (प्रभा) की प्राप्ति हो उसे प्रमाण कहा जाता है। प्रमाण पर अधिक जोर देने के कारण ही इसे (न्यायदर्शन) कभी-कभी प्रमाण शास्त्र भी कहा जाता है। यथा-प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द को स्वीकार किया है।
अब अनुमान के स्वरूप की विवेचना करना उचित प्रतीत होता है। अनुमान दो शब्दों के योग से बना है-अनु+मान्। अनु का अर्थ पश्चात् और मान् का अर्थ ज्ञान होता है। यानी अनुमान का शाब्दिक अर्थ पश्चाद् ज्ञान है। अब प्रश्न उठता है कि अनुमान किस ज्ञान के पश्चात् या बाद आता है? दूसरे शब्दों में अनुमान का आकारिक आधार क्या है?
साधारणतः प्रत्यक्ष ही अनुमान का आकारिक आधार माना जाता है। प्रत्यक्ष के बाद ही अनुमान का स्थान आता है। कुप्पू स्वामी शास्त्री ने ठीक ही लिखा है-"Anum ina as its etymological sense indicates is after-proof. It is after-proof in the sense that it uses the knowledge derived from perception or verval testimony (igama) and helps the mind to march on further and add to its knowledge."
पर्वत पर धूम का प्रत्यक्ष होने पर ही हम वहां अग्नि की उपस्थिति का अनुमान करते हैं। इसी तरह किसी विद्यार्थी को कठोर परिश्रम करते देखकर उसके प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने का अनुमान किया जाता है। महर्षि गौतम, वात्स्यायन आदि ने अनुमान को प्रत्यक्ष के बाद ही बतलाया है। गौतम ने अनुमान के लिए तत्पूर्वकम शब्द का प्रयोग किया है। वात्स्यायन ने कहा है कि "प्रत्यक्ष के अभाव में कोई अनुमान संभव नहीं है।" K.P. Bahadur ने लिखा
-"Inference is knowledge which preceded by perception, and is of three varieties, viz., apriori, aposteriori and what is commonly seen." इसी तथ्य को पाश्चात्य विचारकों ने इस प्रकार व्यक्त किया है, "ज्ञात के आधार पर अज्ञात का ज्ञान प्राप्त करना ही अनुमान है।"
अनुमान से अभिप्राय है “चिह्न द्वारा किसी वस्तु का ज्ञान किया जाना। 39
कभी-कभी अनुमान का आधार आगम' (शास्त्रवचन) भी कहा जाता है। वात्स्यायन प्रत्यक्ष के साथ-साथ आगम को भी अनुमान का आकारिक आधार मानते हैं। उन्हीं के शब्दों में “प्रत्यक्षागमाश्रितमेवानुमानम्"। अर्थात् प्रत्यक्ष अथवा आगम पर आधारित ज्ञान ही अनुमान है। आगम को अनुमान का आधार तब माना जाता है जब प्रत्यक्ष द्वारा इसका आधार नहीं मिलता है। जैसे आगम द्वारा आत्मा की अमरता का ज्ञान होने पर हम इसके निरवयव होने का अनुमान करते हैं।
चटर्जी एवं दत्त ने अनुमान की परिभाषा देते हुए कहा है कि "Inference is a process of reasoning in which we pass from the apprehension of some mark (Linga) to that of something else, by
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