Book Title: Granth Pariksha Part 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 8
________________ ग्रन्थ-परीक्षा। हलायुधजीने अपनी इस टीकामें स्थान स्थान पर इस बातको प्रगट किया है कि यह 'श्रावकाचार' सूत्रकार भगवान उमास्वामी महाराजका बनाया हुआ है। और इसके प्रमाणमें आपने निम्नलिखित श्लोक पर ही अधिक जोर दिया है। जैसा कि उनकी टीकासे प्रगट है:" सूत्रे तु सप्तमेप्युक्ताः पृथक नोक्तास्तदर्थतः। अवशिष्टः समाचारः सोऽत्र वैकथितो धुवम् ॥ ४६२॥" टीका:-" ते सत्तर अतीचार मैं सूत्रकारने सप्तम सूत्रमें कह्यो है ता प्रयोजन तैं इहां जुदा नहीं कहा है । जो सप्तमसूत्रमैं अवशिष्ट समाचार है सो यामैं निश्चय करि कहो है। अब या जो अप्रमाण करै ता• अनंतसंसारी, निगोदिया, पक्षपाती कैसे नहीं जाण्यो जाय जो विना विचाऱ्या याका कर्त्ता दूसरा उमास्वामी है सो याकू किया है (ऐसा कहै ) सो भी यावचन करि मिथ्यादृष्टि, धर्मद्रोही, निंदक, अज्ञानी जाणना!" इस श्लोकसे भगवदुमास्वामिका ग्रन्थ-कर्तृत्व सिद्ध हो या न हो; परन्तु इस टीकासे इतना पता जरूर चलता है कि जिस समय यह टीका लिखी गई है उस समय ऐसे लोग भी मौजूद थे जो इस ' श्राव-. काचारः' को भगवान उमास्वामि सूत्रकारका बनाया हुआ नहीं मानते थे; बल्कि इसे किसी दूसरे उमास्वामिका या उमास्वामिके नामसे किसी दूसरे व्यक्तिका बनाया हुआ बतलाते थे। साथ ही यह भी स्पष्ट हो जाता है कि ऐसे लोगोंके प्रति हलायुधजीके कैसे भाव थे और वे तथा उनके समान विचारके धारक मनुष्य उन लोगोंको कैसे कैसे शब्दोंसे याद किया करते थे । 'संशयतिमिरप्रदीप' में, पं० उदयलालजी काशलीवाल भी इस ग्रंथको भगवान उमास्वामिका बनाया हुआ लिखते हैं। लेकिन, इसके विरुद्ध पं० नाथूरामजी प्रेमी, अनेक सूचियोंके आधारपर संग्रह की हुई अपनी 'दिगम्बरजैनग्रन्थकर्ता और उनके ग्रन्थ"

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