Book Title: Dhaturatnakar Part 1
Author(s): Lavanyasuri
Publisher: Rashtriya Sanskrit Sansthan New Delhi
View full book text
________________
520
वेलयेयुः वेलयन्तु
ह्य० अशीलयत् अशीलयताम् अशीलयन् अ० अशिशीलत् अशिशीलताम् अशिशीलन् प० शीलयाञ्चकार शीलयाञ्चक्रतुः शीलयाञ्चक्रुः
शीलयाम्बभूव/शीलयामास। आ० शील्यात् शील्यास्ताम् शील्यासुः श्व० शीलयिता शीलयितारौ शीलयितारः भ० शीलयिष्यति शीलयिष्यतः शीलयिष्यन्ति क्रि० अशीलयिष्यत् अशीलयिष्यताम अशीलयिष्यन्
१९१५. वेलण् (वेल्) उपदेशे। ३४८ व० वेलयति वेलयत: वेलयन्ति स० वेलयेत् वेलयेताम् प० वेलयतु/वेलयतात् वेलयताम् ह्य० अवेलयत् अवेलयताम्
अवेलयन् अ० अविवेलत् अविवेलताम् अविवेलन् प० वेलयाञ्चकार वेलयाञ्चक्रतुः वेलयाञ्चक्रुः ___वेलयाम्बभूव/वेलयामास। आ० वेल्यात् वेल्यास्ताम्
वेल्यासुः श्व० वेलयिता वेलयितारौ वेलयितारः भ० वेलयिष्यति वेलयिष्यतः वेलयिष्यन्ति क्रि० अवेलयिष्यत् अवेलयिष्यताम् अवेलयिष्यन्
वेलण् कालोपदेशे इत्येके। १९१६. कालण् (काल्) उपदेशे। ३४९ व० कालयति कालयतः कालयन्ति स० कालयेत् कालयेताम् कालयेयुः प० कालयतु/कालयतात् कालयताम् कालयन्तु ह्य० अकालयत् अकालयताम् अकालयन् अ० अचकालत् अचकालताम् अचकालन् प० कालयाञ्चकार कालयाञ्चक्रतुः कालयाञ्चक्रुः
कालयाम्बभूव/कालयामास। आ० काल्यात् काल्यास्ताम् काल्यासुः श्व० कालयिता कालयितारौ कालयितार: भ० कालयिष्यति कालयिष्यतः कालयिष्यन्ति क्रि० अकालयिष्यत् अकालयिष्यताम् अकालयिष्यन्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग १९१७. पल्यूलण् (पल्यूल्) लवनपवनयोः। ३५० व० पल्यूलयति पल्यूलयत: पल्यूलयन्ति स० पल्यूलयेत् पल्यूलयेताम् पल्यूलयेयुः प० पल्यूलयतु/तात् पल्यूलयताम् पल्यूलयन्तु ह्य० अपल्यूलयत् अपल्यूलयताम् अपल्यूलयन् अ० अपपल्यूलत् अपपल्यूलताम् अपपल्यूलन् प० पल्यूलयाञ्चकार पल्यूलयाञ्चक्रतुः पल्यूलयाञ्चक्रुः
पल्यूलयाम्बभूव/पल्यूलयामास। आ० पल्यूल्यात् पल्यूल्यास्ताम् पल्यूल्यासुः श्व० पल्यूलयिता पल्यूलयितारौ पल्यूलयितारः भ० पल्यूलयिष्यति पल्यूलयिष्यतः पल्यूलयिष्यन्ति क्रि० अपल्यूलयिष्यत् अपल्यूलयिष्यताम् अपल्यूलयिष्यन्
वल्यूलेत्यन्ये; पल्यूलयति क्षेत्रं सबुसधान्यं वा १९१८. अंशण (अंश) समाधाने।
समाधानो विभाजनम्। ३५१ व० अंशयति अंशयतः अंशयन्ति स० अंशयेत् अंशयेताम् अंशयेयुः प० अंशयतु/अंशयतात् अंशयताम् अंशयन्तु ह्य० आंशयत् आंशयताम् आंशयन् अ० आंशिशत्
आंशिशताम् आंशिशन् प० अंशयाञ्चकार अंशयाञ्चक्रतुः अंशयाञ्चक्रुः
अंशयाम्बभूव/अंशयामास। आ० अंश्यात्
अंश्यास्ताम्
अंश्यासुः श्व० अंशयिता अंशयितारौ अंशयितारः भ० अंशयिष्यति अंशयिष्यतः अंशयिष्यन्ति क्रि० आंशयिष्यत् आंशयिष्यताम् आंशयिष्यन्
॥अथ षान्तास्त्रयः॥ १९१९. पषण (पष्) अनुपसर्गः पष इत्ययं।
धातुरनुपसर्गोऽदन्तो णिचमुत्पादयति। ३५२ व० पषयति पषयतः पषयन्ति स० पषयेत् पषयेताम् पषयेयुः प० पषयतु/पषयतात् पषयताम्
पषयन्तु
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646