Book Title: Dhaturatnakar Part 1
Author(s): Lavanyasuri
Publisher: Rashtriya Sanskrit Sansthan New Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 625
________________ 608 धातुरत्नाकर प्रथम भाग 1314 1315 1316 1317 1318 अशौटि तुदीत् भ्रस्जीत् क्षिपीत् व्यापतौ व्यथने पाके प्रेरणे अतिसर्जने। अतिसर्जनं त्यागः विलेखने मोक्षणे दिशीत् 1319 क्षरणे 1320 1321 1322 1323 1324 1325 1326 1327 1328 1330 1331 1332 1333 1334 1335 1336 1337 1339 1340 1341 1342 कृषीत् मुच्छ्रुती षिचीत् विद्लँन्ती लुप्लुन्ती लिपीत् कृतैत् खिदंत् पिशत् वृतः मुचादिः रिं 1329 पित् धिंत् क्षित् लाभे छेदने उपदेहे। उपदेहो वृद्धि: छेदने परिघाते अवयवे गतौ धारणे निवासगत्योः प्रेरणे प्राणत्यागे To pervade व्याप्त होना To afflict दुखित होना To cook पकाना To send भेजना To give alms दान देना To pull खींचना To abandon त्याग करना To sprinkle छिड़कना To increase वृद्धि करना To cut काटना To grow बढ़ना To cut काटना To kill मारना To crush पीसना To go जाना To hold धारण करना To live To inspire प्रेरित करना To die प्राण त्याग करना To throw फेंकना To dine भोजन करना To write लिखना To speak बोलना To cover ढंकना To praise स्तुति करना To cut छेदन करना To be tempted by इन्द्रियों से अभिभूत senses होना रहना षत् भृतं विक्षेपे कृत् गृत् लिखत् निगरणे। निगरणं भोजनम्। अक्षरविन्यासे परिभाषणे संरवणे। संयरणमाच्छादनम्। जर्च 1338 झर्चत् त्वचत् ऋचत् स्तुतौ ओव्रस्जौत् ऋछत् छेदने इन्द्रियप्रलयमूर्तिभावयोः इन्द्रियाणां प्रलये मोहे मूर्तिभावे च 1343 गतौ 1344 1345 विछत उछैत् मिछत उछुत प्रछंत् विवासे। विवासोऽतिक्रमः उत्केशे। उत्केशो बाधनम् उञ्छे। उञ्छ उच्चयः। ज्ञीप्सायाम्। त्रीप्सा जिज्ञासा 1346 1347 To go जाना To transgress उल्लंघन करना To give pain दुःख देना To To be eager, to know जिज्ञासु होना, जानना To be plain सरल होना To create रचना करना 1348 1349 उब्जत् सृजंत् आर्जवे विसर्गे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646