Book Title: Dhaturatnakar Part 1
Author(s): Lavanyasuri
Publisher: Rashtriya Sanskrit Sansthan New Delhi

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Page 619
________________ 602 धातुरत्नाकर प्रथम भाग जाना, नीचे करना चुम्बन करना बोलना आच्छादन करना स्तुत 1120 कसुकि 1121 णिसुकि 1122 चक्षिक 1123 ऊर्णग्क् 1124 ष्टुंग्क् 1125 बॅग्क् 1126 द्विषीक् 1127 दुहीक् 1128 दिहींक 1129 लिहीं 1130 हुंक् वाचि गतिशातनयोः चुम्बने वक्तायां वावि आच्छादने स्तुतो व्यक्तायां अप्रीतौ क्षरणे लेपे आस्वादनम् दानादनयोः। दानमत्र हविष्प्रक्षेपः। अदनंभक्षणम् To go, to fall down To kiss To speak To dever To prose To speak clear To hote To milk To plaster To lick Togive in sacrifice, to eat स्पष्ट बोलना गरम करना दोहना लेप करना आस्वाद करना यज्ञ में हवि देना, भोजन करना त्याग करना भय करना लज्जित करना रक्षा करना, पूर्ण करना जाना त्यागे भये 1131 ओहांक 1132 जिमीक् 1133 ह्रींक 1134 पृक् To abandon To fear To be ashamed To protect, to fulfil लज्जायाम पालनपूरणयोः गतो 1135 1136 1137 अंक ओहां मां जाना गतौ मानशब्दयोः नापना, शब्द करना :138 1139 1140 1141 डुदांग्क् डुधांग्क् टुडुभुंग्क् णित्रकी दाने धारणे च। चकारादाने पोषणे च। चकाराद्धारणे शौचे च। चकारात्पोषणे To go To go To measure, to sound To give To hold, to give To nourish To cleanse, to nourish To separate जाना धारण करना पोषित करना निर्मल करना, पोषण करना अलग करना 1142 पृथग्भावे 1143 व्याप्ती To pervade रक्षा करना विज़की अथ षान्त: विष्लूकी इति किददादिगणः सम्पूर्णः । अथ श्यविकरणा दिवादयो वर्णक्रमेणनिदिश्यन्ते। तत्रापि पूर्वाचार्यप्रसिद्धयनुरोधेनादौ दिदूच् 1144 क्रीडाजयेच्छापणिधुतिस्तुतिगतिषु। क्रीड़ा करना, इच्छा To sport, to wish, to win, to make Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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