Book Title: Dhaturatnakar Part 1
Author(s): Lavanyasuri
Publisher: Rashtriya Sanskrit Sansthan New Delhi

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Page 621
________________ 604 धातुरत्नाकर प्रथम भाग 1179 1180 कूिदौच जिमिदाच् आर्द्रभावे स्नेहने करना 1181 जिक्ष्विदाच् मोचने च। चकारात्स्नेहने बुभुक्षायाम् शौचे। शौचं नैर्मल्यम् कोपे 1182 1183 1184 1185 1186 1187 1188 1189 1190 क्षुधंच् शुंधंच् क्रुधंच् षिधूंच् ऋधूच् गृधूच संराद्धौ। संराद्धि निष्पत्तिः वृद्धौ अभिकाङ्क्षायाम् हिंसासंराध्योः। संराद्धि: पाक: प्रीतौ। प्रीति: सौहित्यम् हर्षमोहनयो: मोहनंगवः To be wet गीला होना To be gummy, to चिकना होना, प्रेम love To release, to be मुक्त करना, चिकना gummy, to love होना, प्रेम करना To be hungry भूखा होना To cleanse निर्मल होना To be angry कुपित होना To be ready तैयार होना To grow बढ़ना To long for लोप करना To kill, to cook मारना, पकाना To be tranquil तृप्त होना To be pleased, to be प्रसन्न होना, गर्वित proud होना To be angry कुपित होना To be confused व्याकुल होना To be disturbed विचलित होना रधौच् तृपौच दृपौच 1191 1192 कुपच् गुपच् क्रोधे व्याकुलत्वे विमोहने 1193 1196 1197 1198 1199 1200 1202 युप् 1194 रुप, 1195 लुपच डिपच् टुपच् लुभच् क्षुभच् णभ 1202 तुभच् नशौच क्षेपे समुछाये गायें। गाय॑मभिकाङ्क्षा संचलने। संचलनं रूपान्यथान्यम् हिंसायाम् अदर्शने। अदर्शनमनुपलब्धिः फेंकना, भेजना बढ़ना लालची होना हिचकिचाना हिंसा करना अदृश्य होना, भाग जाना, नष्ट होना 1203 कुशच् 1204 भृश् 1205 भ्रंशूच् 1206 वृशच् 1207 कुशच् 1208 शुषंच् 1209 दुषंचू 1210 श्लिषंच् 1211 1212 जितूंषच् 1213 तुषं 1214 हषच् श्लेषणे अध: पतने वरणे तनुत्वे शोषणे वैकृत्ये। वैकृत्यं रूपभङ्गः आलिङ्गने दाहे पिपासायाम् तुष्टौ। तुष्टिः प्रीतिः To throw, to send To grow To be greedy To be agitated To kill To be invisible, to take a flight, to perish To embrace, to joint To depress To accept To grow thin To dry To be corrupted To embrace To burn To be thirsty To be pleased गले लगना, जोड़ना पतित होना स्वीकार करना पतला होना सुखाना दूषित होना गले लगना जलाना प्यासा होना हर्षित होना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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