Book Title: Dhaturatnakar Part 1
Author(s): Lavanyasuri
Publisher: Rashtriya Sanskrit Sansthan New Delhi

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Page 609
________________ 592 धातुरत्नाकर प्रथम भाग मयि, 794 नयि 795 चयि 796 रयि तयि 798 णयि दयि 797 799 रक्षणे। चकाराद्गतौ। दानगतिहिंसादहनेषु च। चाद्रक्षणे। 800 ऊयैङ् To protect, to go To give, to go, to kill, Toprotect To weave To be dispersed, to smell bad तन्तुसन्ताने। दुर्गन्धविशरणयोः। 801 पूयैङ् रक्षा करना, जाना देना, जाना, मारना, रक्षा करना बुनना बिखेरना, दुर्गन्धयुक्त करना शब्द करना कम्पित करना बढाना 803 802 नूयैङ् क्ष्मायैङ् 804 स्फायैङ् 805 ओप्यायैङ् 806 ताङ् शब्दोन्दनयोः। उन्दनं क्लेदनम विधूनने। वृद्धौ To sound, to wet To tremble To grow संतानपालनयोः। संतानः प्रबन्धः।। 807 वलि 808 वल्लि संवरणे चलने च। चकारात्संवरणे। To protect, to compose To cover To move, to cover To hold To speak, to kill, to रक्षा करना, रचना करना ढंकना चलना, ढंकना धारण करना बोलना. मारना, देना 809 शलि धारणे 810 812 मलि 811 मल्लि भलि 813 भल्लि परिभाषणहिंसादानेषु give 814 815 कलि कल्लि To sound, to count To be silent शब्द करना, गिनना चुप होना शब्दसङ्ख्यानयोः अशब्दे। शब्दस्या-भावोऽशब्दं तृष्णीभावः देवने 816 तेवृङ् 817 देवृङ् खेलना, जीतने की इच्छा करना To play, to wish for conquer, to make, commence, to shine, to praise, to go To serve 818 सेवने सेवा करना वेवृङ् 819 सेवृङ् 820 केवृङ् 821 खेवृङ्, 822 गेवृङ् 823 ग्लेवृङ्, 824 पेवृङ् 825 प्लेवृङ् 826 मेवृङ् 827 म्लेवृङ् रेवृङ् 829 पवि काशृङ् क्लेशि 828 To go जाना 830 831 गतौ दीप्तौ विबाधने To shine To quarrel, to speak distinctly चमकना केश करना, अव्यक्त शब्द करना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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